मुहल्ले

काशी यानी जीवंतता। यहां हर चीज का अपना महतव है। किसी शहर की पहचान उसकी किसी खास बात से होती है लेकिन काशी की हर चीज खास है और उसकी पहचान है। यहां की इमारतें, गलियां, मोहल्ले सिर्फ निर्जीव ईंट, पत्थर के नहीं हैं बल्कि ये सब काशीवासियों की भावनाओं से जुड़े हैं। जिसे हर काशीवासी अपना मानता है। यहां के लोग जब कभी बाहर जाते हैं तो अपने रिश्तेदारों के साथ गलियों मोहल्लों की भी याद आती है। काशी अपने में ऐतिहासिक मोहल्लों को समेटे हुए हैं। प्रस्तुत है काशी के मोहल्लों की रिपोर्ट – 

दशाश्वमेध – 

दशाश्वमेध घाट से प्रसिद्ध है। उसी के नाम पर दशाश्वमेध क्षेत्र भी पड़ गया। काफी घना यह मोहल्ला काशी में चर्चित है। इस मोहल्ले में गलियों का जाल बिछा हुआ है। जो कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस क्षेत्र के ज्यादातर भवन पुराने हैं। वाराणसी नगर निगम में दशाश्वमेध बड़े वार्ड के रूप में है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता के बारे में कई कथायें हैं। कहा जाता है कि इसी मोहल्ले में ब्रह्मा जी ने 10 यज्ञ किये थे। एक दूसरी मान्यता के अनुसार 16 सौ वर्ष पहले समुद्र गुप्त ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था।

कचौड़ी गली-

 कचौड़ी गली जैसा की नाम से ही ज्ञात हो रहा है कि यह मोहल्ला खाने-पीने की चीजों के लिए मशहूर है। यहां काशी की प्रसिद्ध कचौड़ी, जलेबी की दुकानें बहुतायत संख्या में है। हालांकि इस मोहल्ले का नाम पहले कूचा अजायब था। कहा जाता है कि मुस्लिम शासन के समय चर्चित धनी अधिकारी अजायब के नाम से ही इस मोहल्ले का नाम था। इस मुहल्ले में अजीब तरह की वस्तुएं बिकती थी। बाद में खाने-पीने की दुकानें अधिक होने से इस मोहल्ले का नाम कचौड़ी गली पड़ा। यह मोहल्ला भी काफी घना और गलियां सकरी हैं। भवन भी पुरानी शैली के बने हुए हैं। 

दालमण्डी- 

 दालमण्डी काशी के प्रमुख मोहल्लों में है। दालमण्डी में इलेक्ट्रानिक से सम्बन्धित सभी चीजें मिल जाता है। यह मोहल्ला भी काफी घना है। गलियां तो इतनी सकरी हैं कि सूर्य की रोशनी कम ही या यूं कहा जा सकता है कि मोहल्लें में रहने वाले तक नहीं पहुंचती हैं। इस मोहल्ले के नाम के बारे में कहा है कि इस क्षेत्र में अधिकतर घरों में दाल दली जाती थी। दाल का काफी व्यापार यहां से होता था। इसी वजह से इस क्षेत्र का नाम दाल मण्डी पड़ा। एक दूसरी मान्यता के अनुसार इस मोहल्ले में संगीत की मधुर ध्वनियां गुंजायमान रहती थी। साथ ही तबले-सितर की जुगलबंदी की खनक हर समय सुनाई पड़ती थी। इस मोहल्ले में बड़ी-बड़ी गायिकायें रहती थीं। जिससे इस मोहल्ले में हर समय चहल-पहल रहता था। इस वजह से भी इस मोहल्ले का नाम दालमण्डी पड़ा। वर्तमान में यह मोहल्ला बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र हो गया है। 

बुलानाला – 

यह मोहल्ला भी काशी की तंग गलियों से घिरा हुआ है। चौक से मैदागिन जाने वाले रास्ते में स्थित यह मोहल्ला हर समय लोगो ंसे पटा रहता है। इस मोहल्ले में भी कई तरह की दुकानें हैं। पहले इस मेहल्ले से एक बड़ा नाला बहता था। बाद में इस नाले का स्वरूप बिगड़ गया और यह प्रदूषण से युक्त हो गया। यह मोहल्ला भी घना और मकान आपस में जुड़े हुए हैं। इस मोहल्ले में हर समय लोगें की आवाजाही लगी रहती है। 

जंगमबाड़ी- 

यह मोहल्ला गोदौलिया चौराहे के दक्षिण सोनारपुरा की तरफ है। मान्यता के अनुसार पहले इस क्षेत्र का नाम जंगपुर ग्राम था। जो बाद में बदलकर जंगमबाड़ी हो गया। यहां प्रसिद्ध जंगमबाड़ी मठ भी है। यह क्षेत्र भी व्यस्त रहता है। 

ठठेरी बाजार –

 मैदागिन से चौक की तरफ बढ़ने पर चौक थाने से पहले बाईं ओर मुड़ी सकरी गली ठठेरी बाजार मोहल्ला है। यह मोहल्ला वर्तमान में भी काशी की प्राचीन मोहल्लो की याद दिलाता है। भवन अभी भी पुराने शैली के बने हुए हैं। गलियां पतली हैं। भीषण गर्मी में भी इस मोहल्ले में शीतलता बनी रहती है। इस मोहल्ले में पीतल, कांसे के बर्तन खूब बिकते हैं। इसी क्षेत्र में काशी की पुरानी मिठाई की दुकान भी है।

चौखम्भा-

 बर्तनों के मोहल्ले ठठेरी बाजार के आगे का क्षेत्र चौखम्भा कहलता है। इस मोहल्ले में चार बेहतरीन खम्भे वाली मस्जिद है जिसे अग्रवाल वंश के बाबू नरसिंह दास ने बनवाया था। इसी मोहल्ले में मूर्धन्य साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का ‘भारतेन्दु भवन’ है। मोहल्ले में पहले के समय में काशी के रईस रहते थे। इस मोहल्ले के भवन भी आपस में गुत्थम हैं। साथ गलियां बेहद सकरी एवं पथरीली हैं। 

बंगाली टोला-

 बंगाली टोला नाम से प्रसिद्ध यह मोहल्ला काशी में बंगालियों के निवास का गढ़ है। यहां अधिकतर घर बंगाली हैं। इस मोहल्ले में जाने के बाद ऐसा एहसास होता है जैसे बंगाल के किसी क्षेत्र में पहुंचा जा चुका है। जहाँ भाषा बंगाली वेश-भूषा अधिकतर बंगाली और खान-पान की सुगन्ध भी बंगाली आती है। दशाश्वमेध से दक्षिण की ओर जाने पर यह मोहल्ला पड़ता है। 

मिसिर पोखरा – 

मिसिर पोखरा-मोहल्ले के बारे में मान्यता रही है कि प्रसिद्ध विद्वान पं0 किट्टू मिसिर को तत्कालीन गहरवाल काशीपति जयचन्द ने कुछ दान करने का मन बनाया लेकिन मिसिर जी ने दान लेने से मना कर दिया। जयचंद ने मना करने के बाद भी मिसिर जी को गुप्त रूप से 120 गांव दान दे दिया। उन्हीं गांवों में मिसिर पोखरा वाली जगह भी थी। जहां मिसिर जी ने एक तालाब का निर्माण करवाया। उसी के पास उन्होंने राम मंदिर और हुनमान मूर्ति की स्थापना की। यह मोहल्ला गोदौलिया से लक्सा की ओर जाते हुए रास्ते में पड़ता है। इस मोहल्ले में मिसर जी की समाधि भी है। वर्तमान में यह मोहल्ला भी घना हो गया है। नये भवन और बहुत आबादी भी इस मोहल्ले में हो गई है। 

चेतगंज – 

लहुराबीर चौराहे से बेनियाबाग की तरफ जाने पर बीच में चेतगंज मोहल्ला पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस मोहल्ले का नाम काशी नरेश महाराजा चेत सिंह के नाम पर पड़ा। इसी मोहल्ले में अंग्रेजों का चेतसिंह के साथ युद्ध हुआ था। वर्तमान में यह मोहल्ला भी घनी आबादी वाला हो गया है। इसी मोहल्ले में काशी की प्रसिद्ध नक्कटैया कार्तिक महीने में होती है। जिसे लख्खी मेले के नाम से भी जाना जाता है। 

अस्सी – 

भदैनी और अस्सी के बीच पड़ने वाला क्षेत्र अस्सी मोहल्ला कहलाता है। इसी मोहल्ले के पास पूर्व में असि नदी वर्तमान में नाला का गंगा जी में संगम होता है। जीवनदायिनी माँ गंगा के नजदीक बसा यह मोहल्ला काफी व्यस्त और उत्सवमयी लगता है। शाम होते-होते तो इस मोहल्ले में भीड़ बढ़ जाती है। अस्सी चौराहे से लगायत दो तीन चाय की दुकाने तो इस मोहल्ले की इतनी मशहूर है कि दूर-दूर से लोग यहां चाय पीने आते हैं। वहीं काशी के कई प्रबुद्धजन इन दुकानों पर चाय की चुस्कियों के बीच घंटो गुजार देते हैं। इस मोहल्ले पर साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने ‘काशी का अस्सी’ नामक उपन्यास लिख दिया। उसी पर आधारित एक फिल्म मोहल्ला अस्सी भी जल्द प्रदर्शित होने वाली है। काशी के कई ऐतिहासिक मोहल्ले हैं। 

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