भानुशंकर मेहता

मेरे नाना जी जौनपुर में एस0पी0 थे। अभी भी शहर से प्रतापगढ़ मुड़ते ही मकान है। पिता जी मास्टर थे। जाम नगर से आये थे। फिर झाँसी ट्रान्सफर हुआ जहां मेरा जन्म सन् 1921 हुआ फिर वहाँ से हम लोग आ गये मीरजापुर। 

आनंद बहादुर

जिस जमीं की धूर भी सिर चढ़ाई जाती है; वैसी नगरी है बनारस। कहा जाता है कि बनारस ईंट पत्थरों और लोगों की भीड़ का शहर नहीं बल्कि हर तरह के रस, रंगों से ओतप्रोत एक संवेदनशील जीवंत पावन स्थान है। इस शहर की निर्जीव ईमारतें, गलियों में भी आत्मा बसती है। इसी का नाम बनारस है; जहां हमेशा रस बना रहता है। 

Share on

Facebook
Twitter
WhatsApp
Telegram
Email
Print
Scroll to Top