काशी : मरने के लिए नहीं, न मरने के लिए

काशी के बारे में जन.विश्वास यही है कि यहाँ जो मरता हैए मृत्यु के समय बाबा विश्वनाथ उसके कान में मंत्र देते हैं। वही मंत्र तारक होता हैए काशी में मुक्ति हो जाती है। लोग संदेह करते हैंए फिर शुभ.अशुभ कार्यों का फल भोगे बिना कैसे मुक्ति होगीघ् मेरे ननिहाल में एक पंडित थे. पार्थिव राम त्रिपाठी।

स्वाधीनता संग्राम के वाराणसी में पद चिन्ह

1857 के महान क्रान्ति को अंग्रेजों ने ‘‘सिपाही बिद्रोह’’ कह कर उसे नकारने का जो कोशिश किया है, वह कितना गलत है; वह वाराणसी के इतिहास पर खोजने पर साफ हो जाता है। 

सिनेमा का फलता-फूलता बाजार: काशी

लाइट, कैमरा, एक्शन! जी हाँ काशी में  फिल्म निर्माण अब आम बात हो गई है। लागा चुनरी में दाग, गैंग्स ऑफ वासेपुर, मोहल्ला अस्सी, यमला पगला दीवाना, राँझणा जैसी आधुनिक फिल्में काशी की पृष्ठभूमि पर बनीं। फिल्मों का मात्र एक कोना है। 

स्वतंत्रता संग्राम में काशी

स्वतंत्रता के छः दशकों के बाद वर्तामन में जब हम अपने राष्ट्र के 200 वर्षों के पराधीनता के समय को देखते हैं तो हमें यह अभास होता है कि अंग्रेजी शासन के विरूद्ध भारत के प्रायः हरेक भाग एवं शहरों में जन आन्दोलन एवं विद्रोह हुये थे,

राष्ट्रपति

19 सितम्बर 2012 जब मैंने का0हि0वि0 के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग से उन  का मेरा ‘‘आजादी का मसीहा’’ ग्रन्थ के बारे में लिखित विचार लेने गया, तब उनके अध्यक्ष मुझसे कहे-डाक्टर साहब आप सुभाष बाबू को कांग्रेस के अध्यक्ष के जगह राष्ट्रपति शब्द का प्रयोग किए है। 

संत कबीर और काशी

कबीर लोकजीवन से जुड़े लोकधर्मी कवि थे, जिस लोकजीवन को उन्होंने गहराई के साथ देखा, भोगा और जिया था, वह काशी का था। उन्होंने अपने परिवेश का बहुत सूक्ष्म निरीक्षण किया था। किसानों, बंजारो, भटियारों, महाजनों, जुलाहों, बुनकरों आदि के कार्य-व्यापार और व्यावसायिक पद्धति को उन्हेंने निकट से देखा था। 

काशी, वाराणसी और बनारस

उपर्युक्त शीर्षक में काशी और वाराणसी के साथ बनारस नाम को जोड़ने का आशय नगर के आधुनिक सन्दर्भ को परिलक्षित कराना है। क्या ‘बनारस’ काशी और वाराणसी के नामगत विशेषता से कुछ या किसी रूप में आन्वित होता है या नहीं?

हिन्दी भाषा के उन्नायक एवं “काशी के सुकरात

काशी मनोविज्ञानशाला के संस्थापक.संचालक पंण् लाल जी राम शुक्ल काशी की एक विभूति थे। उनकी मित्रमंडली में डाण् राजबली पाण्डेय ;कुलपति जबलपुर विश्वविद्यालयद्धए डाण् हजारी प्रसाद द्विवेदीए प्रोण् गोपाल त्रिपाठीए प्रोण् राजाराम शास्त्रीए प्रोण् रामअवध द्विवेदीए पंण् विश्नाथ मिश्र आदि थे। 

मानमंदिर वेधशाला

 प्राचीनताए ऐतिहासिकता एवं नवीनता तीनों के अदभुत् मेल का नाम वाराणसी है। यहां के समृद्ध कालजयी इतिहास से जुड़ा है राजा.महाराजाओं का काशी प्रेम। काशी सभी को प्रभावित करती रही है। इसी वजह से समूचे भारत वर्ष से लोग यहां बरबस ही खिंचे चले आते रहे हैं। 

काशी की नाट्य परंपरा

  अलग-अलग शहरों की नाट्य परंपराओं का जिक्र आने पर वाराणसी का स्थान संभवतः सबसे महत्वपूर्ण साबित होगा। महज इसलिए नहीं कि वाराणसी की नाट्य परंपरा बेहद पुरानी और अटूट सिलसिलों वाली है, बल्कि इसलिए भी कि वाराणसी की नाट्य परंपरा में सामान्य जनता के वृहत्तर कल्याण के प्रति जवाबदेही की भावना भी रही है।

काशी के सांस्कृतिक उन्मेष में बंग समाज का योगदान

    वाराणसी का नाम मन में आते ही हमारे सामने इस शहर के अनेक रूपों का खाका खिंच जाता है। वाराणसी अपने धार्मिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक वैभव का समन्वय करते हुए भारत के बहुसांस्कृतिक स्वरूप का प्रतिबिम्ब भी प्रस्तुत करता है। 

बिरहा की उत्पत्ति और उसका विकास

  पूर्वी उत्तर प्रदेश का लोक गायन ‘बिरहा’ का आज लोक गायकी के क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान है। उत्तरोत्तर विकास की ओर अग्रसर गायकी की यह लोकविधा आज अपने मूल क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकल कर भारत के विभिन्न प्रान्तों में लोकप्रियता हासिल कर दुनिया के अन्य मंचों पर भी अपना जलवा बिखेर रही है।

जंगे-आजादी में काशी की कला का योगदान

    उपनिवेशवाद को पोषक पश्चिम वालों का औपनिवेशिक देश की लम्बी गुलामी के लिए उसकी कला, संस्कृति और इतिहास पर हमला एक मुख्य औजार है, दुनिया के जिस भाग में तिजारत और फौजी ताकत के बल बूते पश्चिम वालों ने अपना उपनिवेश कायम किया। 

काशी रंगमंच के सौ साल

काशी के रंगमंच की इस कालावधि को रेखांकित करने का मात्र इतना ही प्रयोजन है कि इस कालखंड में रंगमंच में वैज्ञानिक विकास, नाट्य लेखन, प्रयोग आदि की दृष्टि से चमत्कारिक परिवर्तन हुए। 

बनारस का बुढ़वा मंगल

काशी के पूर्व छोर से लेकर पश्चिम पर्यन्त घाटों पर जो अनुमान से ढाई-तीन कोस के विस्तार में होंगे, काशिराज और नगर प्रतिष्ठित महाजनों से लेकर, मदनपुरा के जुलाहों तथा श्मशान के डोमड़ों तक नौकाएँ निज शक्ति और श्रद्धा के अनुसार सुसज्जित दीख पड़ने लगीं। 

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