बाला जी मन्दिर

काशी और मंदिर एक दूसरे के पूरक ही नहीं बल्कि पहचान भी हैं। इस प्राचीन जीवंत शहर में कल्पनाओं से अधिक मंदिर विद्यमान हैं। जिनमें देवी-देवताओं की प्रतिमा श्रद्धालुओं को सम्मोहित कर लेती है। इस शहर के प्रसिद्ध घाट हों या गली-मोहल्ले अथवा विश्वविद्यालय यहां तक कि घरों में भी मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों से निकलने वाले मंत्रों, घण्ट-घड़ियालों की आवाज एवं माथे पर त्रिपुण्ड का लेपन किये लोग काशी की धार्मिकता का प्रमाण देते हैं। घाटों पर अनेकों मंदिर हैं। उन्हीं मंदिरों में से पंचगंगा घाट पर स्थित है बाला जी का मंदिर। घाट के बिल्कुल उपर स्थित इस मंदिर में बाला जी एवं उनकी पत्नी श्रीदेवी एवं भूदेवी की प्रतिमा स्थापित है। छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बाला जी के इस मंदिर की सुंदरता बगल से ही प्रवाहमान माँ गंगा की अविरल धारा से और बढ़ जाती है। इस मंदिर के गर्भगृह को छोड़कर वर्तमान में बाकी का हिस्सा निर्माणाधीन है। मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी भालचंद्र गोकर्ण ने बताया कि कई सौ वर्ष पहले बाला जी की मूर्ति घाट किनारे ही निवास करने वाले एक गरीब ब्राह्णण को गंगा में मिली थी। उस ब्राह्णण ने मूर्ति को वहीं एक पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया। सन 1857 के पहले पेशवाओं ने इस मूर्ति की स्थापना मंदिर में की। बाला जी के दर्शन-पूजन के माहात्म्य के बारे में बताया जाता है कि इनके दर्शन से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं और धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में शारदीय नवरात्र में वृहद स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस दौरान नौ दिनों तक बाला जी का अलग-अलग तरीके से श्रृंगार होता है। जिनके दर्शन के लिए काफी संख्या में दर्शनार्थी मंदिर में पहुंचते हैं। वहीं, कार्तिक पूर्णिमा के दिन इनका विषेश रूप  से मख्खन से श्रृंगार किया जाता है। यह अनूठा श्रृंगार बालाजी मंदिर का प्रतीक बन गया है। मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6 बजे से 10 बजे तक एवं सायं साढ़े 5 बजे से साढ़े 7 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में सुबह की आरती साढ़े 6 बजे एवं शयन आरती सायं 7 बजे होती है।   

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