बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में वाराणसी के व्यवसायी लल्लू जी अग्रवाल ने इस घाट का भी निर्माण कराया था। घाट पर दण्डी स्वामियों का मठ होने के कारण ही इस घाट को दण्डीघाट कहा गया। सन् 1868 में शेरिंग ने इस घाट का प्रथम उल्लेख किया था। घाट तट पर व्यायामशाला एवं एक शिव मंदिर है। स्वच्छता के कारण स्थानीय लोग इस घाट पर स्नान आदि कार्य सम्पन्न करते हैं। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया।