बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में घाट का पक्का निर्माण नगर परिषद (वर्तमान में नगर निगम) के द्वारा कराया गया था। घाट के नामकरण के संदर्भ में मान्यता है कि घाट के समीप ही भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की उनके दैत्य पिता हिरण्यकश्यप से रक्षा की थी, इस कारण घाट का नाम प्रहलाद घाट पड़ा। सवाई मान सिंह द्वितीय संग्रहालय, जयपुर में काशी के घाट सम्बन्धि छायाचित्रों (17वीं-18वीं शताब्दी का) में भी इस घाट को दर्शाया गया है। घाट क्षेत्र में स्थापित प्रहलादेश्वर शिव, प्रहलाद केशव (विष्णु), शीतला, ईशानेश्वर शिव, जगन्नाथ एवं नृसिंह मंदिर प्रमुख है। संदर्भों के अनुसार तुलसीदास काशी में पहले इसी घाट पर निवास करते थे बाद में वह अस्सी घाट पर गये। घाट पर तुलसीदास के निवास स्थान (म0सं0 B 10/58) पर तुलसीदास मंदिर का निर्माण कराया गया है। घाट के सम्मुख गंगा में बाण तीर्थ की स्थिति मानी गई है, यह काशी के महत्वपूर्ण घाटों में से एक है। घाट पर वैशाख माह के शुक्लपक्ष एकादशी से पाँच दिवसीय नृसिंह मेला का आयोजन पूरे हर्षोल्लास के साथ होता है जिसमें पूर्णिमा की झाँकी का दृश्य मनोरम होता है। यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। वर्तमान में घाट पक्का, स्वच्छ एवं सुदृढ़ है, धार्मिक महत्व के कारण घाट पर दैनिक स्नानार्थियों के साथ ही पर्व-विशेष पर स्नान करने वाले स्नानार्थियों का अधिक संख्या में आगमन होता है। सन् 1980 में इस घाट के दो भागों में बाँट कर निषादराज नाम से नये घाट का निर्माण किया गया।