अठ्ठारहवीं शताब्दी के पूर्व यह प्राचीन आदि विशेश्वर घाट का ही भाग था। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बूँदी (राजस्थान) के राजा प्रीतम सिंह के द्वारा घाट का पुनः निर्माण होने के पश्चात घाट दो भागों में बंट गया, पूर्व में घाट का विस्तार वर्तमान बूँदीपरकोटा घाट तक था। घाट पर शीतला मंदिर (अठ्ठारहवीं शताब्दी का) स्थापित है, इस घाट पर भी कर्णादित्य तीर्थ की स्थिति मानी गई है, चैत्र शुक्ल नवमी को घाट पर स्नान करने एवं शीतला मंदिर में दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। घाट पर राजस्थान का प्रसिद्ध मेला गणगौर एवं श्रावणी तीज लोगों के द्वारा पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, धार्मिक महत्व होने से यहाँ दैनिक स्नानार्थियों के साथ ही पर्व-विशेष पर स्नान करने वालों का आगमन होता है। घाट के समीपवर्ती क्षेत्रों में राजस्थानी मूल के लोगों की संख्या अधिक है, सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने घाट का मरम्मत कराया था।