सन् 1807 में पूना के अमृतराव पेशवा ने घाट का पक्का निर्माण कराया तथा घाट पर अमृत विनायक मंदिर (नागर शैली) एवं भवन भी बनवाया। अमृत विनायक (गणेश) मंदिर स्थापित होने के कारण ही घाट का नाम गणेश घाट पड़ा। पूर्व में यह अग्निश्वर घाट का ही अंग था। घाट पर भाद्र माह के शुल्क चतुर्थी को स्नान का विशेष महात्म्य है, इस अवसर पर लोग घाट पर स्नान के पश्चात अमृत विनायक मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं। मंदिर में विभिन्न पर्वों पर धार्मिक अनुष्ठान, प्रवचन-कीर्तन का आयोजन होता है तथा गरीबों एवं निसहायों को अन्न-वस्त्र प्रदान किया जाता है। पेशवाओं का व्यक्तिगत मंदिर होने के कारण मन्त्रोच्चारण में उनके गोत्र नाम का भी उच्चारण किया जाता है। वर्तमान में घाट पक्का एवं सुदृढ़ है, यहाँ दैनिक एवं पर्व-विशेष पर स्नान करने वाले स्नानार्थियों का आवागमन होता है।