घाट की तरफ जाने वाली गली मार्ग में ललिता देवी मंदिर है ललिता देवी को काशी के नवगौरियों में स्थान प्राप्त है तथा घाट स्थित गंगा को ललिता तीर्थ माना जाता है, इसलिये इसका नाम ललिताघाट पड़ा। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में नेपाल नरेश ने घाट का पक्का निर्माण करवाया था। ललिता देवी मंदिर के अतिरिक्त समराजेश्वर शिव, राजराजेश्वरी तथा गंगादित्य (सूर्य) मंदिर (सभी 18वीं शताब्दी के) भी महत्वपूर्ण है। काशी के द्वादश आदित्यों में गंगादित्य को भी स्थान प्राप्त है। समराजेश्वर शिव मंदिर काशी में नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर के प्रतीक रूप में प्रतिष्ठित है, इसे नेपाली मंदिर भी कहते हैं। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर कलात्मक एवं पगोड़ा शैली का विशिष्ट उदाहरण है। इस मंदिर के समीप नेपाल नरेश ने लकड़ी से निर्मित नेपाली कोठी का भी निर्माण कराया था। घाट तट पर सिद्धगिरि एवं उमरावगिरि मठ का निर्माण अठ्ठारहवीं शताब्दी के अन्त में कराया गया तथा सन् 1922 में रतनगढ़ (राजस्थान) के जवाहर मल खेमका ने काशी में मुमुक्षुओं के लिये मोक्ष भवन का निर्माण कराया था। वर्तमान में घाट के एक हिस्से में स्थानीय लोग स्नान कार्य करते हैं, घाट के उत्तरी भाग में सिवेज पम्पिंग स्टेशन है। सन् 1965 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण करवाया गया था।