घाट जाने वाले गली मार्ग में प्राचीन त्रिपुरभैरवी (दुर्गा) मन्दिर स्थापित है। अठ्ठारहवीं शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण हुआ जिसके कारण इस घाट को त्रिपुरभैरवी घाट कहा जाने लगा। गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट का पूर्व नाम वृद्धादित्य घाट था। घाट पर त्रिपुरेश्वर शिव एवं रूद्रेश्वर शिव का मंदिर है तथा पीपल वृक्ष के नीचें पंचायतन शैली में मध्य में शिवलिंग तथा चारो ओर शक्ति, विष्णु, गणेश एवं सूर्य की मूर्तियां है तथा एक छोटे मंदिर में आदित्य रूप में सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में दयानन्द गिरि के द्वारा घाट का पक्का निर्माण एवं घाट तट पर एक मठ (म0सं0 D 51/100) भी बनवाया था। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, यहां स्थानीय लोग स्नान कार्य करते हैं। घाट पर मुण्डन संस्कार, विवाह, गंगा पुजईया आदि शुभ कार्यों को सम्पन्न किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा सन् 1958 में घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।