सन् 1984 में राज्य सरकार ने घाट का पक्का निर्माण करवाया तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद के नाम से घाट का नामकरण किया गया। पूर्व में इसका नाम घोड़ा घाट था; मौर्य काल से ही यह घोड़ों के क्रय-विक्रय का केन्द्र था। जेम्स प्रिसेंप ने इसकी प्रामाणिकता छायाचित्रों के माध्यम से पुष्ट की है। सम्भवतः घोड़ों के क्रय-विक्रय का केन्द्र होने के कारण ही इसका नाम घोड़ा घाट हुआ होगा। घाट तट पर दुर्गा, राम-जानकी एवं शिव के नवनिर्मित मंदिर स्थापित हैं। मंदिरों के समीप ही डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की आदमकद प्रतिमा भी प्रतिस्थापित है। वर्तमान में घाट पर सिवेज पम्पिंग स्टेशन बना हुआ है। घाट सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन इस घाट पर भी होता है। घाट पक्का स्वच्छ एवं शहर के मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ है जिससे काफी संख्या में स्नानार्थियों का आवागमन होता है। नाविक यहाँ नाँव बांधते हैं जो नौका-विहार के लिये उपलब्ध होता है।