घाट एवं घाट तट पर स्थित महल एवं मंदिर का निर्माण सन् 1812 में नागपुर नरेश के मंत्री श्रीधर मुंशी ने कराया था, मंत्री के नाम से ही घाट का नामकरण हुआ। वर्तमान राणामहल घाट पूर्व में इसी घाट का हिस्सा हुआ करता था, सन् 1920 में इस घाट का विभाजन हुआ। घाट के ऊपरी भाग में महल एवं राम जानकी मंदिर, नारायण मंदिर स्थापित है। उन्नीसवीं शताब्दी में इस घाट पर एक शिव मंदिर का भी निर्माण हुआ। वर्तमान में घाट पक्का स्वच्छ एवं सुदृढ़ है और स्थानीय लोग यहाँ स्नान करते हैं, गंगा नाविकों का यह केन्द्र है जहाँ नाविक अपने नाँव को बांधते हैं। सन् 1965 में राज्य सरकार ने घाट का नवनिर्माण कराया था।