अट्ठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बाला जी पेशवा ने इस घाट का पक्का निर्माण कराया था। इसके पहले यह असिघाट का ही एक भाग था। तुलसीदास जी ने यहीं निवास कर ‘रामचरित मानस’ के कई खण्डों की रचना की थी एवं यहीं पर ब्रह्मलीन हुये थे, इसी कारण इसे तुलसीघाट नाम दिया गया। सन् 1941 में इस घाट का पुर्ननिर्माण बलदेव दास बिड़ला ने करवाया था। इस घाट पर काशी के द्वादश आदित्यों में प्रथम प्रसिद्ध लोलार्ककुण्ड है, इसलिये इसे लोलार्कघाट भी कहा जाता था। धार्मिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण घाट है, घाट एवं समीपवर्ती भागों में लोलार्केश्वर, अमरेश्वर, भोलेश्वर, महिषमर्दिनी (स्वप्नेश्वरी), अर्कविनायक, हनुमान (18वीं एवं 20वीं शताब्दी के दो मंदिर), राम पंचायतन (दो मंदिर) के मंदिर हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमान मंदिर (B 2/14) की स्थापना स्वयं तुलसीदास जी ने की थी एवं एक व्यायाम शाला का भी निर्माण किया था, जिसमें प्रतिवर्ष जोड़ी, गदा, कुश्ती इत्यादि की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। भाद्र शुक्ल षष्ठी को लोलार्ककुण्ड में स्नान का विशेष महात्म्य है, मान्यता है कि इस दिन इस कुण्ड में स्नान करने से निःसंतान स्त्रियों को संतान प्राप्त होता है एवं कुष्ठ रोगियों को रोग से मुक्ति मिलती है। अर्क विनायक मंदिर काशीखण्ड में वर्णित 56 विनायक मंदिरों में से एक है। पंचक्रोशी यात्रियों के लिये इसके दर्शन-पूजन के बाद आगे की यात्रा करने का विधान है। रामचरित मानस का सामूहिक पाठ एवं प्रवचन भी इस घाट पर आयोजित होता है। विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला इसी घाट पर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को सायंकाल गोधुलि बेला में मात्र कुछ क्षणों में सम्पन्न होता है, जिसमें काशी नरेश सहित नगर एवं नगर के बाहर के असंख्य लोगों की उपस्थिति रहती है, जो घाट की सीढ़ियों, समीप के भवनों एवं नावों पर से पारम्परिक मेले का आनन्द लेते हैं। इस घाट पर धुपद संगीत मेला का भी आयोजन होता रहा है, इस तीन या पाँच दिवसीय मेले में भारत के प्रसिद्ध धुपद गायक अपने सुर-ताल एवं गायन-वादन से संगीत की मधुर धारा प्रवाहित करते हैं।
इस घाट पर आयोजित समस्त धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम संकट मोचन मंदिर के महन्त के देख-रेख में सम्पन्न होते हैं।