डॉ0 रघुनाथ सिंह-
काशी के राजनीतिज्ञों में डॉ0 रघुनाथ सिंह का नाम महत्वपूर्ण है। स्वतन्त्रता आंदोलन में सच्चे देशभक्त की तरह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। जिसके चलते इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी। इस दौरान जेल में मानसिक और शारीरिक यातनाओं से भी जूझना पड़ा। बावजूद इसके आजादी पाने का जज्बा सारे प्रतिकूल परिस्थितियों पर हावी रहा। देश की आजादी के बाद 1952 से 1967 तक वाराणसी संसदीय क्षेत्र से जनप्रतिनिधि तक रहे। सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श पर चलने वाले डॉ0 रघुनाथ सिंह अत्यन्त मृदुभाषी एवं सरल स्वभाव के व्यक्तित्व थे। अपने इसी गुणों के प्रभाव से वे आम जनता के साथ राजनीतिक फलक में भी सबके लोकप्रिय एवं चहेते रहे। कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य के साथ बीच का रास्ता निकालने में माहिर थे। एक अच्छे प्रशासक के मानक पर सौ आने खरे उतरने वाले डॉ0 रघुनाथ सिंह को शिपिंग बोर्ड इंडिया, हिन्दुस्तान जिंक बोर्ड लिमिटेड और भारतीय जहाजरानी बोर्ड का चेयरमैन भी बनाया गया। जिससे काशी से निकले इस कद्दावर नेता ने देश के विकास में महती भूमिका निभायी। डॉ0 रघुनाथ सिंह सिर्फ राजनीति में ही सक्रिय नहीं रहे बल्कि लेखन के क्षेत्र में झंडा गाड़ा। इन्होंने 41 पुस्तकों की रचना की। जिसमें से कई उत्कृष्ट पुस्तकों को पुरस्कृत भी किया गया।
राजनारायण– काशी के राजनारायण समाजवादी विचारधारा से ओत-प्रोत नेता थे। ठाट-बाट से दूर जनसेवा के लिए सदैव तत्पर रहते थे। इन्होंने आम जनता के दुखों-तकलीफों को नजदीक से जाना और उन्हें दूर करने के लिए काफी संघर्ष भी किया। इनकी छवि आम जनता में निर्भीक, स्पष्टवादी एवं संवेदनशील नेता के रूप में थी। स्वतन्त्रता के पूर्व आजादी के लिए कई बार जेल गये, वहीं, स्वतन्त्रता के बाद भी कई बार जेल गये। इन्होंने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पद को भी सुशोभित किया। काशी के अनमोल रत्न राजनारायण जीवन पर्यंत जमीन से जुड़कर काम किया।
यज्ञनारायण उपाध्याय– बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी यज्ञनारायण उपाध्याय एक सफल अध्यापक, वकील, समाजसेवी, स्वतन्त्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे। इनका जन्म 1878 ई0 में भदैनी इलाके में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता रामेश्वरदत्त उपाध्याय ज्योतिष के मर्मज्ञ विद्वान थे। अपने पिता से प्रेरणा लेते हुए यज्ञनारायण पढ़ने-लिखने में लग गये। इन्होंने राजकीय संस्कृत कालेज से संस्कृत विषय में परास्नातक किया। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी एवं एलटी की परीक्षा पास की। तदुपरान्त ये शासकीय सेवा के तहत अध्यापक के रूप में चयनित हुए। कुछ समय बाद अध्यापन छोड़कर वकालत करने लगे और जल्द ही प्रतिष्ठित वकीलों में शुमार हो गये। बावजूद इसके उनका मन देश को आजाद कराने के लिए उद्वेलित था। 1920 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवग्या आंदोलन शुरू किया तो परतन्त्रता की बेड़ी में जकड़ीं भारत माता को स्वतन्त्र करने के लिए उपाध्याय जी भी इस आंदोलन से जुड़ गये। जिसकी वजह से उन्हें कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी। काशी विद्यापीठ की स्थापना के बाद उसमें अध्यापन कार्य भी किया। प्रान्तीय विधानसभा के गठन के बाद 15 वर्ष तक वाराणसी के देहात क्षेत्र से निर्वाचित रहे। जनसेवा करते हुए 3 सितंबर 1957 को यज्ञनारायण उपाध्याय का निधन हो गया।