वाराणसी सिर्फ शिवनगरी से ही विख्यात नहीं है। यहां अन्य देवी-देवताओं के भी अदभुत मंदिर स्थापित हैं। जहां दर्शनार्थी मत्था टेकने पहुंचते रहते हैं। देवी मंदिरों की भी एक लंबी श्रृंखला काशी में है। काशी के इन्हीं जागृत देवी मंदिरों में से एक है तारा देवी का मंदिर। काशी की विशिष्ट सकरी गलियों के बीच तारा मंदिर मकान संख्या डी0 24/4 पाण्डेय घाट मोहल्ले में स्थित है। इस मंदिर की खास पहचान यह है कि इसमें चार बड़े-बड़े आंगन हैं। जिसमें अलग देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। चार आंगन इस मंदिर की पहचान बन गयी है। जिसकी वजह से इसे चार आंगन वाला मंदिर भी कहा जाता है। स्थापत्य कला की दृष्टि से मंदिर के भीतर की बनावट बेहतरीन है। यह मंदिर किसी भूलभुलैया से कम नहीं है। चारो आंगनों की बनावट लगभग एक जैसी है। अमूमन किसी भी मंदिर तक पहुंचने के लिए सही पता मालूम होना चाहिए। उस स्थान तक पहुंचने पर मंदिर दूर से ही पता चल जाता है। लेकिन तारा देवी मंदिर में पहुंचने में थोड़ी कठिनाई होती है क्योंकि इस मंदिर की बनावट ही दूसरे प्रकार की है। गली से मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरानी कोठरी से गुजरना पड़ता है जिसका दरवाजा बहुत छोटा सा है। बाहर गली से देखने पर यह अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता है कि भीतर चार आंगनों वाला भव्य मंदिर है। कोठरी से अंदर प्रवेश करने पर स्थित है मुख्य आंगन, जिसमें एक तरफ पारिजात का वृक्ष है। इस आंगन के सामने बरामदे में मां विशालाक्षी देवी की प्रतिमा स्थापित है। आंगन के दाहिनी ओर राधा-कृष्ण, ललिता का मंदिर है। आंगन के बायीं ओर गोपाल का मंदिर है। इस मंदिर की विशिष्टता यह है कि पहले आंगन में पहुंचने के बाद ऐसा लगता ही नहीं है कि भीतर तीन आंगन आकार में इतने बड़े और हैं। मुख्य आंगन से दाहिनी ओर पतली सी गैलरी में जाने पर दाहिने तरफ छोटा सा दरवाजा है उसमें प्रवेश करने पर बड़ा सा आंगन है जिसमें तारा देवी की प्रतिमा स्थपित है। वहीं उसी गैलरी से बायीं ओर जाने पर इसी प्रकार के एक आंगन में मां काली का मंदिर है। मुख्य आंगन से बायीं ओर गैलरी में जाने पर एक और आंगन स्थित है। इस आंगन में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थित है। चारो आंगनों में मंदिरों के आगे फौव्वारा भी बना हुआ है। मंदिर के निर्माण के बारे में बताया जाता है कि 1752 में रानी भवानी ने कराया था। इस मंदिर को तंत्र पीठ भी कहा जाता है। यहां अक्सर तंत्र क्रिया करने वाले भक्त आकर ध्यान लगाते हैं। बेहद ही शांत वातावरण में स्थित यह मंदिर आकर्षित करता है। दर्शन-पूजन के लिए यह मंदिर प्रातःकाल साढ़े 6 से अपराह्न डेढ़ बजे तक एवं सायं 4 से रात 10 बजे तक खुला रहता है। शयन आरती रात्रि 9 बजे होती है। मंदिर के बाहर गली में फूल-माला की कई दुकानें खुल गयी हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है।