वाराणसी में जहां हर गली मोहल्ले में शिव मंदिर स्थित हैं वहीं इस पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्म्य है। जिनके दरबार में भक्त अपना मत्था टेकते हैं। काशी के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक दुर्गा मां का मंदिर दुर्गाकुण्ड के पास स्थित है। गाढ़े लाल रंग के इस मंदिर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1760 ई0 में रानी भवानी ने कराया था। उस समय मंदिर निर्माण में पचास हजार रूपये की लागत आयी थी। मान्यता के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थक कर दुर्गाकुण्ड स्थित मंदिर में ही विश्राम किया था। दुर्गाकुण्ड क्षेत्र पहले वनाच्छादित था। इस वन में उस समय काफी संख्या में बंदर विचरण करते थे। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में आबादी बढ़ने पर पेड़ों के साथ बंदरों की संख्या भी घट गयी। मां दुर्गा का यह मंदिर नागर शैली में निर्मित किया गया है। मुख्य मंदिर के चारो ओर भव्य बरामदे का निर्माण बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कराया था। कहा जाता है कि मंदिर के मण्डप को भी बाजीराव ने ही बनवाया था। जबकि मंदिर से सटे विशाल कुण्ड का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। मंदिर में लगे दो बड़े घण्टों को नेपाल नरेश ने लगवाया है। मुख्य मंदिर के चारों ओर बने बड़े से बरामदे में नियमित रूप से श्रद्धालु बैठकर मां का जाप करते रहते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए दो द्वार है। मुख्य द्वार ठीक मां के गर्भगृह के सामने है। वहीं गर्भगृह के बायीं ओर छोटा सा द्वार है। मंदिर परिसर में गणेश जी, भद्रकाली, चण्डभैरव, महालक्ष्मी, सरस्वती, राधाकृष्ण, हनुमान एवं शिव की भी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर में स्थित भद्रकाली मंदिर के पास यज्ञकुण्ड है। जहां नियमित रूप से यज्ञ होता है। मां दुर्गा के इस मंदिर में नवरात्र में दर्शन के लिए दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। मंदिर को बेहतरीन ढंग से विभिन्न रंगों के झालरों से सजाया जाता है। जो रात में बेहद ही आकर्षक लगता है। नवरात्र के चतुर्थी तिथि पर मां को कुष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। इस दौरान मां का दिव्य श्रृंगार किया जाता है। शिव की इस नगरी में सावन महीना आते ही मन्दिर के आस-पास उत्सवमय महौल हो जाता है। इस अवसर पर दुर्गा देवी मंदिर के पास भी मेला लगा रहता है। दूर-दूर से आये दर्शनार्थी मां का दर्शन करते हैं। मां दुर्गा का यह प्रसिद्ध मंदिर प्रातःकाल 4 से रात 10 बजे तक खुला रहता है। जबकि आरती सुबह साढ़े 5 बजे एवं रात्रि साढ़े 9 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है।