काशी में देवी मंदिरों की लम्बी श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण मंदिर चौसट्टी देवी का है। चौसट्टी देवी को जागृत पीठों में से एक माना गया है। मान्यता के अनुसार काशी के राजा दिवोदास धार्मिक प्रवृत्ति के थे लेकिन वे भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। एक बार उन्होंने देवताओं के समक्ष शर्त रखी की यदि शिव काशी को छोड़कर चले जाये ंतो वे काशी को स्वर्ग की तरह बना देंगे। देवताओं के अनुनय-विनय पर भगवान शिव काशी छोड़कर कैलाश चले गये। कथा के अनुसार उस समय गंगा में दूध की धारा प्रवाहित होती थी। कुछ दिनों बाद भगवान शिव ने अपनी अनुपस्थिति में चौसठ योगिनियों को काशी में भेजा। चौसठ योगिनियों को काशी इतनी प्रिय लगी की वे यहीं पर रह गयीं। इन्हीं को चौसट्टी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार चैत्र मास की प्रतिपदा को चौसट्टी माता आयीं थीं। माना जाता है कि चौसट्टी मां की दिव्य प्रतिमा के दर्शन-पूजन करने से सारे पाप दूर हो जाते हैं। करीब पांच सौ वर्ष पहले लगभग सन 15 सौ में कलकत्ता निवासी जमींदार प्रतापादित्य को स्वप्न आया कि पास में ही मां भद्रकाली की प्रतिमा है जिसे काशी में चौसट्टी देवी के पास स्थापित कर दें। उन्होंने उसी अनुसार मां भद्रकाली की प्रतिमा को नौका द्वारा कलकत्त्ता से काशी लाया। मां भद्रकाली की उस प्रतिमा को प्रतापादित्य ने चौसट्टी देवी की प्रतिमा के ठीक सामने स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया। साथ ही चौसट्टी मां के ऊपर अष्टधातु का छत्र चढ़ाया। इसके बाद से काफी संख्या में श्रद्धालु मां चौसट्टी के दर्शन-पूजन करने आने लगे। भक्तों की मां में असीम आस्था है। होली वाले दिन तो मां का दरबार दर्शनार्थियों से पट जाता है। घाटों एवं गलियों से होते हुए लोग होली खेलने के बाद मां का दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। वहीं नवरात्र के दौरान भी काफी संख्या में भक्त मंदिर में पहुंचकर मां के आगे शीश नवाते हैं। नवरात्र में चौसट्टी मां की नौ देवियों के रूप में पूजा होती है। इस दौरान मंदिर को विधिवत सजाया जाता है। साथ ही मां का भव्य श्रृंगार किया जाता है एवं समय-समय पर मनमोह लेने वाली झांकी भी सजायी जाती है। वहीं मां का वार्षिक श्रृंगार चैत्र महीने (अप्रैल) में होता है। इनका मंदिर सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है। मां की दो बार आरती होती है। सुबह की आरती 5 बजे एवं शयन आरती रात 11 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है। वर्तमान में मंदिर के पुजारी चुन्नीलाल पन्ड्या हैं। यह मंदिर बंगाली टोला मोहल्ले में डी 22/17 चौसट्टी घाट पर स्थित है। कैन्ट रेलवे स्टेशन से करीब 6 किलोमीटर दूर इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सोनारपुरा तक आटो से उसके बाद पैदल गलियों से होते हुए जाया जा सकता है।