ऐसी मान्यता है कि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र सत्य की रक्षा के लिए काशी के इस श्मशान घाट पर स्वयं बिके थे, इसी कारण इस घाट का नाम हरिश्चन्द्र घाट पड़ा। यह काशी के दो श्मशान घाटों में से एक है। इस घाट पर शवदाह कब से आरम्भ हुआ इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, इस घाट पर 15-16वीं शताब्दी के सती स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि उस समय यहाँ श्मशान घाट था। ग्रन्थों के अनुसार यहाँ प्राण त्यागने वाले को भैरवी यातना से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
काशी केदारमाहात्म्य के अनुसार केदारेश्वर अन्तर्गृही यात्रा इसी घाट पर स्नान करने के पश्चात प्रारम्भ होती थी। वर्तमान के घाट पर केवल शवदाह का कार्य सम्पन्न होता है। सन् 1988 के पूर्व यह घाट बालू क्रय-विक्रय का केन्द्र था परन्तु घाट का पक्का निर्माण हो जाने के पश्चात् यह प्रतिबन्धित हो गया तथा इसी समय यहाँ विद्युत शवदाह गृह का भी निर्माण हुआ जो परम्परागत शवदाह के साथ-साथ चलता रहता है। घाट पर तीन शिव मंदिर हैं, जिसमें सन् 1960 में निर्मित काशी कामकोटीश्वर मंदिर (शिव मंदिर) प्रमुख है, जो दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में बना हुआ है।