सुदामा

जनकवि सुदामा पाण्डेय धूमिल की स्मृतियों को सहेजने के लिए पुस्तकालय के उद्घाटन जनकवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ के गांव खेवली में ‘देश की संसद मौन है’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी से पूर्व विवेकानंद काशी जन कल्याण समिति द्वारा संचालित बाल विद्यालय में ‘धूमिल स्मृति बाल पुस्तकालय’ का उद्घाटन भी किया गया। जनकवि धूमिल की स्मृति में आज हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित इस संगोष्ठी की शुरूआत प्रेरणा कला मंच की तरफ से नारी अस्मिता पर आधारित नाटक ‘गंगा हो या गांगी’ का जीवंत मंचन किया गया। संगोष्ठी की शुरूआत में वक्ताओं के क्रम में सर्वप्रथम डॉ आनंद दीपायन ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘धूमिल’ जी को आज उनके गांव खेवली में याद किया जाना अत्यंत गर्व का विषय है, क्योंकि सच में आज संसद का जुड़ाव जनता से दूर होता जा रहा है तथा जनप्रतिनिधि खेवली से दूर होते जा रहे हैं। अगले वक्ता के क्रम में हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रवक्ता एवं प्रसिद्ध कवि होसांग मर्चेन ने कहा कि निश्चित रूप से कविता से परिवर्तन आयेगा। उस परिवर्तन की शुरूआत आज खेवली गांव से हो चुकी है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जगनारायण ने कहा कि हिन्दी दिवस के अवसर पर आज बाल पुस्तकालय की शुरूआत तथा जनकवि धूमिल को याद किया जाना एक वास्तविक तथा व्यावहारिक पहल है तथा यह शुरूआत उन पेशेवर लोगों को आइना भी है जो हिन्दी दिवस मनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते है। गोवा विश्वविद्यालय के प्रो0 ब्रह्मदेव मिश्र ने कहा कि आज सच में ‘रोटी से कौन खेलता है’ इस विषय पर मेरे देश की संसद मौन है। कवि धूमिल ने उन जनसरोकारों से जुड़कर बहुत गहराई से कविताएँ की। ट्रेड यूनियन के सक्रिय सदस्य तथा कवि धूमिल के मित्र श्रीप्रकाश जी ने धूमिल जी के साथ अपनी पुरानी यादों को सुनाया। उन्होंने कहा कि धूमिल की कविताओं में ग्रामीण समाज और लोकतंत्र की विसंगतियों का सशक्त शब्द चित्र दिखाया पड़ता है। धूमिल जी की कविताओं में जीने के पीछे तर्क का असली चित्र प्रस्तुत है। समाज से गहराईपूर्वक जुड़ाव ही धूमिल की कविता की अन्तशक्ति है। प्रकाश जी ने अपने संस्मरण में आगे बताया कि किस प्रकार से धूमिल जी ने अपनी प्रसिद्ध पंक्तियाँ- ‘‘एक आदमी रोटी बोलता है….. कविता की रचना रोटी सेंकते समय की थी। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘धूमिल को जिन्दा रखने’ की आदत है तथा कहा कि धूमिल की संवदेनशीलता तथा आज आदमी के आगे मानवीय दृष्टि अद्वितीय तथा अद्भुत थी। वक्ताओं की शंृखला में आगे श्री विनयशंकर राय ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि धूमिल जी की स्मृति में आज शुरु किया गया पुस्तकालय एक सकारात्मक शुरुआत है। अगले वक्त के क्रम में भारतीय भाषा संस्थान की निदेशक गिरिया बहन ने धूमिल की अंतिम कविता का पाठ किया तथा धूमिल की कविता का उद्धरण देते हुए कहा कि – ‘‘लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो, जिसके मुँह में लगाम है।’’ 

वरिष्ठ पत्रकार सियाराम यादव ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि- ‘‘धूमिल के गाँव में पुस्तकाय की शुरूआत तथा इस तिथि का चयन वास्तव में जनकवि को सच्ची श्रद्धांजलि है। धूमिल की कविता का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि अब समय आ रहा है जब देश की संसद ज्यादा देर तक मौज नही रह सकती जरूरत है तो व्यापक जन जागरण और हस्तक्षेप की। 

संगोष्ठील के मुख्य अतिथि प्रो0 दीपक मलिक ने कहा कि धूमिल की कविता में कहीं भी अस्पष्टता नहीं थी। धूमिल को कविता के एक-एक शब्द ‘बुलेट’ की तरह हैं। कवि धूमिल के निजी जीवन के संघर्षों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि इसी जमीन से उठकर आज धूमिल एक बड़े योद्धा के रूप में हमारे सामने खड़े हैं। दीपक मलिक ने आगे कहा कि जिस प्रकार कवि धूमिल के चले जाने के बाद कविता को धार कमजोर हो गयी ठीक उसी तरह लोकतंत्र की कमजोर हो रही स्थिति में जनका की धार कमजोर होने लगी है। कई बार तो देश की संसाद आम जनता के विरूद्ध षडयंत्र करती हुई दिखाई देती है। धूमिल की कविताएँ उनके संघर्ष से पैदा हुई है तथा आज कवि धूमिल और खेवली को याद करना हम सभी के लिए गौरव का विषय है। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो0 एस0एस0 कुशवाहा (पूर्व कुलपति काशी विद्यापीठ) ने कहा कि कवि धूमिल का पूरा जीवन संघर्षों की महागाथा है। धूमिल की सारी रचनाएँ कालजयी हैं और इन रचनाओं का रचनाकार भी कालजयी है धूमिल की सभी रचनाओं ने विद्रूप व्यवस्था पर बड़ा करारा प्रहार किया गया है। आज हम सभी की जिम्मेदारी है कि अपने बीच के इस जनकवि के विचारों और संदेश का अनुगमन करे। 

कार्यक्रम का संचालन नंदलाल मास्टर प्रथा संयोजन वल्लभाचार्य पाण्डेय, धनंजय त्रिपाठी, मनीश कुमार , आनंद शंकर पाण्डेय, रामकुमार, डॉ0 अवधेश दीक्षित, गगन प्रकाश, मनीष सिंह, अभिनव, हाजी मुहम्मद अस्लम, धर्मेन्द्र कुमार पाण्डेय, हीना, रामवली वर्मा, जयहिन्द पटेल, प्रदीप, दीनदयाल सूरज, इन्दुशेखर सिंह, गजानन्द जोशी, विनय आदि उपस्थित थे।  


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