सन् 1835 में ग्वालियर की महारानी बैजाबाई सिन्धिया ने घाट का पक्का निर्माण कराया, इसके पश्चात इसको सिन्धिया घाट कहा जाने लगा। गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट का प्राचीन नाम वीरेश्वर घाट था। सन् 1302 में विरेश्वर नामक सज्जन ने घाट पर आत्मवीरेश्वर (शिव) मंदिर का निर्माण कराया जिसके कारण इसको वीरेश्वर घाट कहा जाता था। इसका उल्लेख काशीखण्ड में भी हुआ है। ऐसी मान्यता कि अग्निदेव का जन्म यहीं पर हुआ था। घाट के समक्ष गंगा में हरिश्चन्द्र एवं पर्वत तीर्थ की स्थिति मानी गई है, घाट पर वीरेश्वर (शिव) मंदिर के अतिरिक्त पर्वतेश्वर शिव एवं दत्तात्रेयेश्वर (शिव एवं दत्तात्रेय) मंदिर प्रमुख है।
सन् 1949 में ग्वालियर राजपरिवार द्वारा घाट का जीर्णोद्धार कराया गया था। यह गंगा तट काशी के सर्वाधिक रमणीय घाटों में स्थान पाता है। वर्तमान में घाट पक्का, स्वच्छ एवं सुदृढ़ है, यहां दैनिक एवं स्थानीय स्नानार्थी स्नान करते हैं, घाट के समीपवर्ती क्षेत्रों में शैव-वैष्णव, कबीर, नानक आदि विभिन्न-पन्थों के साधू-सन्यासी निवास करते हैं।