सिनेमा का फलता-फूलता बाजार: काशी

                                                                                                                      – अभिनव पाण्डेय
लाइट, कैमरा, एक्शन! जी हाँ काशी में  फिल्म निर्माण अब आम बात हो गई है। लागा चुनरी में दाग, गैंग्स ऑफ वासेपुर, मोहल्ला अस्सी, यमला पगला दीवाना, राँझणा जैसी आधुनिक फिल्में काशी की पृष्ठभूमि पर बनीं। फिल्मों का मात्र एक कोना है। सिनेमा का आधुनिक दौर काशी को फलते-फूलते बाजार की कसौटी पर कस रहा है। आइए काशी के सिने मार्केट से अवगत होते हैं। 
काशी में सिनेमा जगत का प्रारम्भिक दौर- 
वास्तव में फिल्मिस्तान के मूलतः दो ही केन्द्र हैं, बाम्बे और मद्रास। (1975) में वाराणसी के कुछ निर्माताओं ने प्रयोग के तौर पर दंगल नामक भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया, जिसमें उन्हें अशातीत सफलता मिली।
काशी मेें फिल्मों के उन्नायक- आगा हश्र काश्मीरी- आगा हश्र काश्मीरी के पिता मूलतः काश्मीरी थे, तथा काशी में शाल का व्यापार करने आये और यहीं के बाशिन्दे हो गये, वाराणसी में थियेटर युग की समाप्ति के बाद मदन थियेटर के फिल्म ‘समाज का शिकार’ उर्फ ‘भारतीय लक’ का दिग्दर्शन किया। आगा जी गीत, संवाद, कहानी लेखन में अति महत्वपूर्ण रहे। ‘पाक-दामन’ ‘बिल्व मंगल’, आँख का नशा’ ‘हिन्दुस्तान’, यहूदी की लड़की’, ‘शीरी-फरहाद’ ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ उनके द्वारा लिखी महत्वपूर्ण फिल्में हैं। 
कुन्दन कुमार- कुन्दन कुमार ने ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ैबे, ‘लागी नाही छूटे राम’, ‘भौजी’ (भोजपुरी) ‘अपना पराया’, ‘फौलाद’ ‘परदेशी’, दुनिया के मेले आदि फिल्मों का निर्माण व निर्देशन कर काशी का मान संवर्द्धन किया। 
अरविन्द सेन- अरविन्द सेन ने ‘चौबे जी’, अमानत’, ‘काफिला’, ‘मुकद्दर’, ‘जमाना’, ‘जालसाज’, ‘मेरे अरमाँ’, ‘मेरे सपने’, ‘मर्यादा’, ‘अतिथि’, ‘कसौटी’, ‘नसीहत’, आदि फिल्मों का निर्माण निर्देशन कर काशी को गौरवान्वित किया। 
देवी शर्मा- वाराणसी के ही देवी शर्मा ने ‘गुनाहों का देवता’ काली टोपी लाल रूमाल, गंगा की लहरें, सुहागरात, नाचे नागिन बाजे बीन का सफल निर्देशन किया।
कनक मिश्र- काशी के फिल्म निर्देशक कनक मिश्र ने जियो तो जियो, ‘सावन को आने दो’ जैसी सुपरहिट फिल्मों का निर्माण किया।
प्रेमचन्द- प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द आगा हश्र के बाद काशी सिने साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आप अजंता मिनोटोन के आह्वान पर मुम्बई गये ‘गरीब-मजदूर’, ‘सेवा-सदन’ ‘बाजारे हुस्न’, ‘तिरिया चरित’, ‘स्वामी’, ‘रंगभूमि’ लिखी। दूसरे नामों से भी फिल्में लिखीं तथा मरणोपरान्त ‘गोदान’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘निष्कृति’ पर फिल्में बनीं। 
अन्य फिल्म निर्देशक- वाराणसी के सिने परम्परा में गोपाल मोती व ज्ञानकुमार ने मीनू, एस0एन0 श्रीवास्तव ने ‘विद्यार्थी’ ओमप्रकाश जौहरी ने ‘एक सूरत दो दिल’, त्रिलोक जेटली द्वारा ‘गोदान’ ए0के0 गुप्ता की चिमनी का धुआँ, सुन्दर दर की सोरहो सिंगार कर दुल्हनियाँ आई इसके अतिरिक्त द्वारिकादास, ज्ञान चन्द्र श्रीवास्तव, प्रभाकर सिंह जैसे निर्देशकों ने काशी फिल्म को पुष्पित-पल्लवित किया। 
काशी की अभिनय परम्परा- भले ही काशी का कोई कलाकार सुपरस्टार नहीं हुआ लेकिन कन्हैया लाल, लीला मिश्रा, कुमकुम, मोनिका, अम्बिका वर्मा, सुजीत कुमार पùा खन्ना, साधना सिंह, नारायण भण्डारी, मधु मिश्रा, जे0 मोहन, देव मल्होत्रा, केवल कृष्ण, रत्नेश्वरी, रामचन्द्र विश्वकर्मा, पूनम मिश्र, सोनी राठौर, त्रिभुवन बच्चन, अशोक सेठ, संजय ने अमिट छाप अभिनय में छोड़ी। 
फिल्मी संगीत निर्देशन वादन- पं0 रविशंकर व पं0 एस0एन0 त्रिपाठी ने चिरस्मरणीय फिल्मी धुनें बनाईं तथा फिल्मी संगीत में शास्त्रीय धुनों का सम्मिश्रण किया। फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ में बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई, पं0 किशन महराज, पं0 शामता प्रसाद उर्फ गुदई महराज द्वारा फिल्मों में झंकृत कर देने वाला तबला वादन अविस्मरणीय है। संगीतकार हेमन्त भी काशी की धरती का धूल माथे पर लगाये बिना नहीं रह सके।
नृत्य एवम् नृत्य निर्देशन- वाराणसी की तारा, सितारा व अलकनन्दा बहनों ने नृत्य विधा में धूम मचाकर नृत्य कौशल को नई कसौटी में कसा। बेहतरीन नृत्य निर्देशिका अन्नपूर्णा ‘रजिया सुल्तान’ फिल्म में अनुबन्धित होने के कुछ समय बाद ही दिवंगत हो गई। माधव किशन जाने-माने नृत्य-निर्देशक रहे। नर्तक रामकृष्ण, सोनी राठौर तथा पूनम मिश्र ने भी नृत्य निर्देशन में एक अलग पहचान बनाई है।
गायक-गायिका- बनारस घराने की गायिका राजकुमारी ने फिल्म ‘महल’ तथा गायिका गिरजा देवी ने फिल्म ‘याद रहे’ में गाना गाया। मदन विश्वकर्मा ने कई भोजपुरी फिल्मों में गीत गाये।
गीतकार- अनजान बनारस के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और सफल गीतकार रहे, जिन्होंने ‘खई के पान बनारस वाला’ जैसे गीत रचना से एक अलग मुकाम हासिल किया। इनके पुत्र समीर की बॉलीवुड गीतकारों में तूती बोल रही है।
बी-बी मौजी, भोलानाथ गहमरी, मधुकर बिहारी, डॉ0 नामवर सिंह ने भी गीत रचना में सराहनीय प्रयास किये।
फिल्म समीक्षा व प्रचार-प्रसार- काशी में दिनेश भारती, कुमार विजय, भोलानाथ मिश्र, बंशीधर राजू, शेखर धोवाल नामक व्यक्तियों ने समुचित फिल्म समीक्षा एवम् गीतकार अनजान के भाई गोपाल पाण्डेय सफल फिल्म जनसम्पर्क अधिकारी रहे हैं। फिल्म प्रचार एवम् छायांकन में धीरेन्द्र, किशन व बृजकुमार ने अच्छा नाम कमाया। 
भोजपुरी फिल्मों का दौर काशी में- भोजपुरी फिल्मों का दौर 1975 से ‘दंगल’ से शुरू हुआ। काशी में निर्मित भोजपुरी फिल्मों की श्रंखला इस प्रकार है। 
‘दंगल’, ‘माई कऽ लाल’, ‘धरती मइया’, ‘गंगा मइया भर द अचरवा हमार’, ‘सोनवा कऽ पिंजरा’, ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, ‘नैहर की चुनरी’, ‘वेदना’, ‘भारत की सन्तान’, ‘सिन्धुरवा भइल मोहाल’, ‘बसुरिया बाजे गंगा तीर’, ‘पान खाये सैयाँ हमार’, ‘आँगन की लक्ष्मी’, ‘दुलहिन’, ‘किस्ती किनारा’, ‘बैरी कॅगना’, ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’, आदि।
टी0वी0 सीरियल- गंगाघाट, गंगा के तीरे-तीरे, रंग ली चुनरिया रंग में, सजाय दऽ मॉग हमार, माई कऽ,अचरा भारत की संतान, गंगा जइसन भौजी हमार, घर गृहस्थी, चम्पा-चमेली, गंगा मइया भर दऽ गोदिया हमार, सबै नचावत राम गोसाई, गंगा माई, गंगा दर्शन, सुबहे काशी आदि बनारस के प्रमुख सीरियल हैं।
फिल्म वितरक कम्पनी- ए0जी0 फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स, देवी पùमावती फिल्म्स, श्री विन्ध्याचित्रम्, सरोज फिल्म्स, लाईट ट्रेडर्स, रवि फिल्म्स, ए0के0 डिस्ट्रीब्यूशन, फिल्म एण्ड फिल्मको, काशी फिल्म्स, सरोज फिल्म्स, राजकमल डिस्ट्रीब्यूटर, ए0के0 डिस्ट्रिीब्यूटर आदि प्रमुख वितरण कम्पनियाँ हैं। फिल्म वितरण का केन्द्र काशी के होने से अब दिल्ली, यू0पी0 टेरिटरों जो एक में है, दो भागों में बाँटने की बात चल रही है। 
फिल्मी पत्रिका- श्रीमुन्नू प्रसाद पाण्डेय ने उत्तर-प्रदेश का पहला फिल्मी साप्ताहिक पत्र ‘रम्भा’ का प्रकाशन शुरू किया। यह पत्र अब भी काशी का एक मात्र फिल्मी पत्र है।
सत्यजीत राय और काशी का फिल्मांकन- सत्यजीत राय का प्रथम बनारस आगमन ‘पथेर पांचाली’ सिरीज की फिल्म ‘ओपुर संसार’ की शूटिंग के दौरान हुआ थ। इस फिल्म में बनारस की सही जानकारी न होने के कारण ‘जय बाबा फेलूनाथ’ की शूटिंग के दौरान 16 दिन वाराणसी में रहे।
ओपुर संसार में बनारसी गालियों-घाटों के साथ-साथ ‘जय बाबा फेलूनाथ’ में बनारस की अलग-अलग विशेषताओं का प्रभाव है। वे बनारसी स्थानीय भित्ति चित्र से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपनी किताब ‘एकेई बोले’ शूटिंग के फेलूदार शंगे काशी ते’ में उल्लेख हुआ है। बनारसी साड़ों को भी उन्होंने अपनी फिल्म में जगह दी। सत्यजीत राय के अनुसार बनारसी फिल्मों का एक अलग मिजाज है।
 
     

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