घाट का पक्का निर्माण सन् 1825 में विश्वम्भर दयाल की पत्नी ने कराया था, घाट क्षेत्र में संकठा देवी (कात्यायनी दुर्गा) का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है जिसके कारण घाट का नामकरण हुआ। पूर्व में इसका विस्तार वर्तमान गंगामहल (द्वितीय) तक रहा, सन् 1864 में गंगामहल (द्वितीय) का निर्माण होने के पश्चात यह दो भागों में बँट गया। काशीखण्ड के अनुसार संकठाघाट प्राचीन समय में श्मशान घाट था, घाट स्थित यमेश्वर शिव एवं हरिश्चन्द्रेश्वर मंदिर तथा यम द्वितीया को घाट पर होने वाले स्नान से इसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है। घाट के सम्मुख चन्द्र एवं वीर तीर्थों की स्थिति मानी गई है। प्रत्येक शुक्रवार, यम द्वितीया एवं नवरात्र के छठवें दिन घाट पर स्नान करने एवं संकठा देवी के दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। पद्मपुराण के अनुसार इस देवी को विजया, कामदा, दुखःहरिणी, कात्यायनी, सर्वरोगहरणा के नाम से भी जाना जाता है, इसके अतिरिक्त घाट पर वशिष्ठेश्वर शिव, बैकुण्ठमाधव, चिन्तामणि विनायक मंदिर भी प्रतिस्थापित है। इस घाट के आस-पास के क्षेत्र को देवलोक कहते हैं, इसकी गणना काशी के रमणीय घाटों में होती है। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, धार्मिक महत्व होने के कारण यहाँ स्नानार्थियों की भीड़ होती है। घाट पर बड़ौदा के राजा का महल भी स्थित है जिसे महारानी गुहनाबाई (महानाबाई) ने बनवाया था। समीपवर्ती क्षेत्रों में गुजराती ब्राह्मणों का निवास स्थान है, सन् 1965 में राज्य सरकार ने घाट का जीर्णोंद्धार कराया था।