अट्ठारहवीं शताब्दी में तत्कालीन काशी नरेश बलवन्त सिंह ने इस घाट का निर्माण कराया था, कालान्तर में यह घाट कई भागों में बंट गया। वर्तमान में प्राचीन घाट का उत्तरी भाग अपने पुराने नाम से ही जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नेपाल के राजा विक्रम शाह द्वारा घाट पर एक विशाल भवन का निर्माण करवाया गया तथा एक शिव मंदिर की भी स्थापना की गई। घाट पर ही काशी नरेश द्वारा स्थापित ब्रह्मेन्द्र मठ है, जिसमें दक्षिण भारतीय तीर्थ यात्रियों के निवास की व्यवस्था है। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक सांस्कृतिक दृष्टि से यह घाट महत्वपूर्ण था क्योंकि प्रसिद्ध ‘बुढ़वा मंगल’ मेला इसी घाट क्षेत्र पर होता था। शिवाला घाट पर मुहर्रम की दसवीं तारीख को कुछ ताजियों को गंगा जी में बहाया जाता है। यह बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल है। पत्थरों से निर्मित घाट स्वच्छ एवं सुदृढ़ है जहाँ तीर्थयात्री एवं स्थानीय लोग धार्मिक क्रियाओं को सम्पन्न करते हैं। सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया।