वाराही देवी

बहुभाषी, संस्कृति, खान-पान एवं रहन-सहन के इस अनोखे शहर काशी का प्रशासनिक ढांचा भी अद्भुत रहा है। इस शहर के पालक जहां स्वयं भगवान शिव बाबा विश्वनाथ के रूप में हैं वहीं, यहां के कोतवाल बाबा कालभैरव हैं जो काशी को बाहरी बाधाओं से बचाने का जिम्मा संभाले हुए हैं। जबकि वाराही देवी का भी काशी की दैवीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता के अनुसार मां वाराही क्षेत्र पालिका के रूप काशी की रक्षा करती हैं। इन्हें गुप्त वाराही भी कहा जाता है। जबकि पुराणों के अनुसार मां शती का जिस स्थान पर काशी में दांत गिरा था वहीं मां वाराही देवी उत्पन्न हुईं। इसलिए इन्हें शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। मां वाराही असुरों से युद्ध के दौरान मां दुर्गा के सेना की सेनापति भी थीं। कहा जाता है कि मां वाराही के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और मान-प्रतिष्ठा के साथ आयु और शक्ति में वृद्धि होती है। इनका प्रसिद्ध मंदिर डी 5/83 पिपरा भैरवी मोहल्ला मान मंदिर घाट पर स्थित है। बेहद सकरी गलियों के बीच स्थित इस मंदिर में वाराही देवी की ओजपूर्ण स्वयंभू प्रतिमा है। मंदिर के प्रधान महंत एवं व्यवस्थापक कृष्णकांत दुबे बताते हैं कि मां का यह मंदिर कब निर्मित किया गया इसकी जानकारी नहीं है हां समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। मां के महात्म्य के बारे में बताया कि शक्तिपीठ होने से इनके समक्ष निर्मल मन से जो कुछ भी मांगा जाता है वह मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाती है। मंदिर में बड़ा कार्यक्रम माघ महीने की षष्टी तिथि को होता है। इस दौरान मां का वार्षिक श्रृंगार बेहद आकर्षक ढंग से किया जाता है। इस मौके पर काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में उपस्थित होकर मां के दर्शन कर भजन-कीर्तन करते हैं। वहीं नवरात्र की सप्तमी को मां के दर्शन का विधान है। नवरात्र में मंदिर को बेहतरीन ढंग से सजाया जाता है। साथ ही सप्ताह में मंगलवार एवं शुक्रवार को भी काफी संख्या में भक्त मां के दरबार में मत्था टेकते हैं। वाराही देवी का यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए केवल सुबह ही खुला रहता है। मंदिर प्रातःकाल साढ़े 4 बजे से पूर्वाह्न 9 बजे तक खुलता है। मंदिर खुलने के साथ ही करीब 25 मिनट मां का स्नान कराया जाता है। फिर 5 बजे आरती शुरू होती है। इनकी आरती की खासियत यह है कि यह सामान्य ढंग से न होकर शास्त्रीय संगीत में होती है। क्योंकि मां वाराही को शास्त्रीय संगीत काफी प्रिय है। करीब डेढ़ घण्टे की आरती के दौरान मां की कृपा से आस-पास का माहौल संगीतमय हो जाता है। कैन्ट स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आटो द्वारा गोदौलिया चौराहे पर पहुंकर वहां से पैदल दशाश्वमेध घाट होते हुए मानमंदिर घाट की सीढ़ियों के ऊपर चढ़ने पर कुछ मीटर की दूरी पर गलियों में मां वाराही का दिव्य मंदिर स्थित है। इनके मंदिर के पास ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ के प्रतिरूप सोमेश्वर महादेव का भी मंदिर स्थित है।

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