अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में काशी के प्रमुख व्यापारी वच्छराज ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया था, जिसका उल्लेख प्रिन्सेप (सन् 1831) ने किया है। इस घाट क्षेत्र में गंगा मंदिर, अक्रुरेश्वर (शिव) मंदिर, सुपार्श्वनाथ जैन (श्वेताम्बर) मंदिर, एवं माता आनन्दमयी द्वारा निर्मित गोपाल मंदिर (सन् 1968) है। जैन सम्प्रदाय के धार्मिक दृष्टि से भी यह घाट महत्वपूर्ण है। क्योंकि ऐसा स्वीकार किया गया है कि जैन सम्प्रदाय के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का जन्म स्थान वच्छराजघाट से जुड़े भदैनी मुहल्ले में है। सांस्कृतिक-धार्मिक कार्यक्रमों में अक्रुरेश्वर (शिव) मंदिर के वार्षिक श्रृंगार के अवसर पर आयोजित गायन-भजन-कीर्तन प्रमुख हैं। यह गंगातट क्षेत्रीय लोगों के स्नान एवं व्यायाम का केन्द्र है। सन् 1965 में राज्य सरकार के द्वारा इस घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।