पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुरोहित लालामिसिर ने इस घाट एवं घाट पर स्थित विशाल महल का निर्माण करवाया था, अतः इस घाट का पूर्व नाम लालामिसिर घाट था। महाराज रीवां ने सन् 1879 में इस घाट एवं महल को क्रय कर लिया तब से ही इस घाट का नाम रीवां घाट हो गया, महल पर रीवां कोठी, बनारस 1879, राजचिन्ह के साथ अंकित है। महल का तटीय भाग पत्थर के कई अर्द्धस्तम्भों के योग से निर्मित है, गंगा के बहाव से घाट एवं महल की सुरक्षा के लिये पक्की सीढ़ियों तथा तटीय उत्तरी एवं दक्षिणी भाग पर मढ़ियों (अष्टपहल) का निर्माण कराया गया है। पूर्व में यह घाट भी असिघाट का एक हिस्सा था। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस महल को रीवां नरेश ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को दान में दे दिया, विश्वविद्यालय ने इसमें दृश्य और संगीत कला के विद्यार्थियों के लिये छात्रावास का आरम्भ किया।