अठ्ठारहवीं शताब्दी में जयपुर के राजा सवाईमान सिंह के द्वारा घाट एवं घाट स्थित राम पंचायतन मंदिर का निर्माण कराया गया था, घाट पर राम पंचायतन मंदिर स्थापित होने के कारण घाट का नाम रामघाट पड़ा। पूर्व में घाट का विस्तार वर्तमान मेहताघाट तक था। सत्रहवीं शताब्दी में औरंगजेब के द्वारा मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, अठ्ठारहवीं शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण सवाई मान सिंह द्वारा कराया गया था जो वर्तमान में सुरक्षित है। गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट के सम्मुख गंगा में राम, ताम्रवराह, इन्द्रद्युम्न एवं इक्ष्वाकु तीर्थों की स्थिति मानी जाती है। चैत्र माह के रामनवमी पर घाट पर स्नान एवं राममंदिर में दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। राम मंदिर के अतिरिक्तकाल विनायक एवं महाराष्ट्र के लोक देवता खण्डोबा का मंदिर भी घाट पर स्थित है, मार्गशीर्ष माह के पंचमी एवं अष्टमी को महाराष्ट्रीयन लोग हर्षोल्लास के साथ खण्डोबा का पूजा करते हैं तथा नृत्य-संगीत एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। वर्तमान में घाट पक्का, स्वच्छ एवं सुदृढ़ है, यहां स्थानीय एवं पर्व विशेष पर स्नानार्थी स्नान कार्य करते है। समीपवर्ती क्षेत्रों में महाराष्ट्र के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने घाट का पुनः निर्माण कराया था।