सन् 1807 में पूना के पेशवा अमृतराव ने घाट का निर्माण करवाया था, अतः प्रारम्भ में यह अमृतराव घाट के नाम से जाना जाता था, बाद में यह राजाघाट के नाम से जाना जाने लगा, जिसका प्रथम उल्लेख मोतीचन्द्र (सन् 1931) ने किया है। अमृतराव ने घाट तट पर ही एक महल एवं श्री संस्थान अन्नपूर्णा मठ की भी स्थापना की थी। वर्तमान में मठ द्वारा साधु-सन्यासियों एवं निःसहायों को अन्न-वस्त्र की सुविधा निःशुल्क प्रदान की जाती है। मठ में ही अन्नपूर्णा मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर एवं शिव मंदिर स्थापित है। महल एवं महल के सामने गंगा में नाव पर विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, इसमें शास्त्रीय एवं स्थानीय लोक कलाओं की प्रस्तुति स्थानीय कलाकारों के द्वारा किया जाता है। घाट पक्का एवं स्वच्छ है जिसके कारण स्थानीय लोग स्नान करते हैं। घाट पर मठ द्वारा गंगा आरती का भी भव्य आयोजन होता है। सन् 1965 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।