मीरघाट

सन् 1735 में घाट एवं घाट स्थित विशाल किले का निर्माण काशी के तत्कालीन फौजदार मीर रूस्तमअली ने करवाया था; इसी कारण कालान्तर में इसे मीरघाट कहा जाने लगा। गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट का पूर्व नाम जरासंध घाट था। घाट स्थित गंगा में जरासंध तीर्थ की स्थिति मानी गई है एवं ऊपरी भाग में जरासंधेश्वर शिव मंदिर है, इस कारण ही इसका पूर्व नाम पड़ा था। कार्तिक माह के कृष्ण चतुर्दशी को यहां स्नान करने एवं जरासंधेश्वर शिव के दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। घाट पर ही प्रमुख विशालाक्षी देवी का मंदिर है जो धार्मिक महत्व के साथ ही वास्तुशिल्प का सुन्दर उदाहरण है, इसका निर्माण दक्षिण भारतीय वास्तु परम्परा के अनुरूप हुआ है। विशालाक्षी देवी को काशी के नौ गौरियों में स्थान प्राप्त है, जिनके दर्शन मात्र से सम्पूर्ण सांसारिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। भाद्र माह के कृष्णपक्ष तृतीया को घाट पर स्नान के बाद इनके दर्शन-पूजन का महात्म्य है। इसके अतिरिक्त घाट पर विशालाक्षीश्वर शिव, श्वेत माधव (विष्णु), आशा विनायक (गणेश) एवं यज्ञबराह मंदिर स्थापित है। घाट पर दो मठ निर्मित है, भजनाश्रम मठ में अधिकांशतः बंगाली विधवायें निवास करती हैं इस मठ की सम्पूर्ण व्यवस्था कलकत्ता के स्व0 गनपत राय खेमका ट्रस्ट द्वारा की जाती है। दूसरा मठ नानक पंथी सिक्ख साधुओं का है, इस मठ के द्वारा प्रतिदिन निःशुल्क भोजन एवं औषधियों का वितरण गरीबों एवं निसहायों के मध्य किया जाता है। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, यहाँ स्थानीय लोग स्नान कार्य करते है। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।

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