सोलहवीं शताब्दी में आमेर (राजस्थान) के राजा मानसिंह ने घाट तथा घाट स्थित महल एवं मंदिर का निर्माण कराया था, इसी कारण इस घाट का नामकरण मानमंदिर घाट हुआ। मानमंदिर घाट का प्रथम उल्लेख जेम्स प्रिसेंप (सन् 1831) में किया था। गीवार्णपदमंजरी के अनुसार घाट का पूर्व नाम सोमेश्वर घाट था, अठ्ठारहवी शताब्दी तक यह पूर्व नाम से ही लोकप्रिय रहा। यह घाट धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व की अपेक्षा विशाल कलात्मक महल एवं इसमें निर्मित नक्षत्र वेधशाला के लिये अधिक महत्वपूर्ण है। महल मथुरा के गोवर्धन मंदिर का स्वरूप एवं उत्तर-मध्य कालीन राजस्थानी राजपूत दुर्ग शैली का सुन्दर उदाहरण है। सत्तरहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मानसिंह के वंशज राजा सवाई जय सिंह ने ग्रह-नक्षत्रों की सटीक जानकारी देने वाले नक्षत्र वेधशाला का निर्माण कराया था, इसका नक्शा सवाई जय सिंह के प्रसिद्ध ज्योतिषी समरथ जगन्नाथ ने बनाया था। वेधशाला में सम्राट यंत्र, लघु सम्राट यंत्र, दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिशांग एवं चक्र यंत्र है। वर्तमान में महल भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। घाट पर राजा मान सिंह द्वारा स्थापित अदाल्मेश्वर शिव मंदिर (म0सं0 D 16/28) तथा उन्नीसवीं शताब्दी में निर्मित सोमेश्वर शिव, रामेश्वर शिव, स्थूलदन्त विनायक मंदिर (वर्तमान में तीनों आवासीय भवन में) है। घाट पक्का एवं स्वच्छ है एवं स्थानीय लोग स्नान आदि कार्य करते हैं। आज भी देशी-विदेशी पर्यटक इस कलात्मक महल एवं वेधशाला का अवलोकन कर मुग्ध होते हैं, वर्तमान में वेधशाला के अस्तित्व को बचाये रखने के लिये मरम्मत की आवश्यकता है। सन 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने घाट का पुनः निर्माण कराया था।