मां राजराजेश्वरी के दरबार में पहुंचकर श्रद्धालुओं को असीम शांति का अनुभव होता है। इसका एक कारण तो यह है कि मां अपने भक्तों को सभी संतापों को हर कर सुख शांति प्रदान करती हैं। वहीं दूसरी वजह यह कि मां का यह मंदिर जिस स्थान पर स्थित है वह बेहतरीन है। घाटों और गलियों के इस अदभुत नगर की बनावट ऐसी है जो लोगों को सहज ही अपनी ओर खींच लेती है। मां राजराजेश्वरी का दरबार सिद्धगिरि मठ, डी, 1/58 ललिताघाट पर स्थित है। वहीं, सीधे ललिता घाट से ही सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। घाट से उपर चढ़ने पर गुफा जैसे सकरे रास्ते पर कुछ कदम ही बढ़ने पर बायीं ओर उपर सीढ़ियां हैं। करीब 20 सीढ़ियां चढ़ने पर बायीं ओर एक बड़ा सा हाल है। इस हाल में प्रवेश करते ही सामने मां की दिव्य प्रतिमा दरवाजों के भीतर विराजमान है। मां की बड़ी सी प्रतिमा को देखकर कोई भी सम्मोहित हो सकता है। मां राजराजेश्वरी के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और प्रसिद्धि मिलती है। मां राजराजेश्वरी पार्वती जी का स्वरूप हैं। इन्हें श्रीयंत्र और ललिता सहस्त्र नाम प्रिय है। मां राजराजेश्वरी का मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है जो पूर्वाह्न 10 बजे तक खुला रहता है। वहीं 10 से 12 बजे तक दर्शनार्थियों के मर्भगृह की खिड़की खुली रहती है। दोपहर 12 से 3 बजे तक मंदिर का पट पूरी तरह से बंद रहता है। पुनः अपराह्न 3 बजे से 6 बजे तक दर्शन के लिए खिड़की खुली रहती है। शाम 6 से 8 बजे तक गर्भगृह का द्वार खुल जाता है। मां की आरती पूरे विधि-विधान से सुबह साढ़े 7 बजे एवं शाम 6 बजे होती होती है। मां का नवरात्रि में नौ श्रृंगार भव्य ढंग से होता है। वहीं शिवरात्रि को मन्दिर में रूद्रि पाठ होता है।