ब्रह्माघाट

सन् 1740 में नारायण दीक्षित ने दुर्गाघाट के साथ ही इस घाट का भी पक्का निर्माण कराया था। घाट का प्रथम उल्लेख गीवार्णपदमंजरी में हुआ है। घाट के नामकरण के सम्बन्ध में कथा प्रचलित है कि जब शिव जी के आदेश पर ब्रह्मा जी का काशी में आगमन हुआ तो ब्रह्म जी ने इस घाट को अपना निवास स्थान बनाया, इसीलिये इस घाट को ब्रह्मघाट कहा जाने लगा। ब्रह्मा एवं काशी के सम्बन्ध का उल्लेख मत्यस्यपुराण में हुआ है। घाट पर ब्रह्मा मंदिर (13वीं शताब्दी की ब्रह्मा की प्रतिमा स्थापित) तथा ब्रह्मेश्वर शिव मंदिर स्थित है। घाट पर ही स्थित श्री काशी मठ संस्थान के अन्दर बिन्दु माधव (दत्तात्रेय) एवं लक्ष्मीनृसिंह मंदिर स्थापित है। घाट के समक्ष गंगा में भैरव तीर्थ की स्थिति मानी गई है। गंगातट से ब्रह्मेश्वर शिव मंदिर तथा ब्रह्मा मंदिर में जाने के लिये अलग-अलग सीढ़ियाँ शास्त्रीय विधान के अनुसार निर्मित हैं, ब्रह्मेश्वर शिव तक जाने के लिये पाँच-पाँच सीढ़ियों के बाद चौकी का निर्माण किया गया है जो पंचायतन शिव का प्रतीक है, वहीं ब्रह्मा मंदिर तक चार-चार सीढ़ियों के पश्चात चौकी का निर्माण हुआ है जो चतुर्मुखी ब्रह्मा का प्रतीक माना जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार आदि शंकराचार्य काशी आगमन पर श्री काशीमठ संस्थान में निवास करते थे। कांचिकोटि शंकराचार्य द्वारा प्रत्येक वर्ष इसी घाट पर चातुर्मास अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। वर्तमान में घाट पक्का, स्वच्छ एवं सुदृढ़ है, यहां स्थानीय लोग स्नान कार्य करते हैं। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।

.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top