सोलहवीं शताब्दी के अन्त में बूँदी (राजस्थान) महाराजा राव सुरजन ने घाट एवं घाट पर स्थित विशाल महल का निर्माण कराया था। गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट का प्राचीन नाम आदिविशेश्वर घाट था। घाट स्थित महल के मध्य विश्वेश्वर शिव का मंदिर है जिसके कारण ही घाट का नाम आदि विश्वेश्वर पड़ा था। पूर्व में यह वर्तमान शीतलाघाट (द्वितीय) तक फैला था, उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तर्राद्ध में बूँदी के राजा राव प्रीतम सिंह ने शीतला घाट (द्वितीय) का पुनः निर्माण कराया जिसके पश्चात् ही घाट प्रीतम सिंह और शीतला घाटों में बंट गया। सन 1958 में राज्य सरकार के द्वारा दोनों घाटों की मरम्मत करायी गयी और प्रीतम सिंह घाट का नाम बूँदी राजाओं से सम्बन्धित कर बूँदी परकोटा घाट कर दिया गया। घाट पर आदि विश्वेश्वर के अतिरिक्त अन्नपूर्णा, शेषमाधव (विष्णु) तथा कर्णादित्य सूर्य, आदित्य रूप में) मंदिर स्थापित है। घाट के सम्मुख गंगा में कर्णादित्य तीर्थ की स्थिति मानी गई है। यद्यपि घाट पक्का है लेकिन गंगातट तक पहुँचने के लिये शीतला घाट के सीढ़ियों से होकर जाना पड़ता है। अतः स्थानीय लोग इस घाट पर स्नान न करके शीतला घाट पर ही स्नान कार्य करते हैं परन्तु महल के कलात्मक स्तम्भों एवं नक्काशियों के अवशेष को आज भी देखा जा सकता है।