बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में नगर परिषद (वर्तमान में नगर निगम) द्वारा घाट के उत्तरी भाग का पक्का निर्माण कराया गया था। पूर्व में यह महता घाट के नाम से जाना जाता था, घाट पर बद्रीनारायण (नर-नारायण) मंदिर स्थित होने के कारण कालान्तर में यह बद्रीनारायण घाट के नाम से जाना जाने लगा। घाट पर स्थित बद्रीनारायण मंदिर का प्रतीक रूप माना जाता है। घाट के समक्ष गंगा में नर-नारायण तीर्थ की स्थिति मानी गई है, ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण तीर्थ में स्नान के पश्चात बद्रीनारायण के दर्शन-पूजन के समान पुण्य प्राप्त होता है। बद्रीनारायण मंदिर के अतिरिक्त घाट पर नागेश्वर शिव मंदिर भी स्थापित है। पौष माह में घाट पर स्नान करने का विशेष महात्म्य है। सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने पक्के घाट का पुनः निर्माण तथा शेष कच्चे भाग का पक्का निर्माण कराया था। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, धार्मिक महत्व के कारण तीर्थयात्री एवं स्थानीय लोग यहाँ स्नान कार्य करते हैं। घाट की स्वच्छता बनाये रखने के लिये घाट पर सुलभ शौचालय का भी निर्माण कराया गया है।