पोटिया (बंगाल) की महारानी एच0के0 देवी ने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्रयागघाट का निर्माण कराया था। काशीखण्ड के अनुसार इस घाट को प्रयागतीर्थ माना जाता है, अतः इसी कारण इसका नाम प्रयागघाट पड़ा। बेनिया तालाब से मिसिर पोखरा तथा गोदौलिया होते हुये गोदावरी नदी (अब बरसाती नाला) का प्रयाग घाट पर गंगा में संगम होता है। घाट पर प्रयागेश्वर शिव, शूलटंकेश्वर शिव, ब्रह्मेश्वर (चतुर्मूख शिवलिंग), अभदय विनायक, प्रयागमाधव (लक्ष्मी नारायण) मंदिर स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा ने दस अश्वमेघ यज्ञ के पश्चात घाट पर ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। ऐसा माना जाता है कि इस घाट पर स्नान एवं शूलटंकेश्वर शिव के दर्शन करने से प्रयाग (इलाहाबाद) में स्नान करने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है, दशाश्वमेध घाट से संलग्न होने के कारण यहां भी दैनिक एवं पर्व-विशेष पर स्नानार्थियों की भीड़ होती है। माघ-माह में घाट पर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व है। घाट पर विभिन्न उत्सवों एवं शुभ कार्यों को सम्पन्न किया जाता है। सन् 1977 में भागलपुर (बिहार) के ललित नारायण खण्डेलवाल ने घाट का पुनः निर्माण कराया था।