संगीत के महारथियों से सजा संकट मोचन संगीत समारोह
साल भर बाद आखिरकार संगीतप्रमियों को एक बार फिर संगीत की विभिन्न विधाओं से साक्षात्कार करने का मौका मिल रहा है। हनुमत दरबार में संगीत की झनकार इस गर्मी में ठंडे हवा के झोके सा एहसास दे रही है। हनुमान जयंती के अवसर पर होने वाला संकटमोचन संगीत समारोह 19 से 23 अप्रैल चल रहा है। इस पांच दिवसीय संगीत के महाकुम्भ में संगीत के महारथी अपनी कला से लोगों को अभिसिंचित कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि रसमयी काशी में इस समारोह की लोकप्रियता हर वर्ष लगातार बढ़ती जा रही है। संगीत का ऐसा आकर्षण की देश ही नहीं सात समंदर पार की सीमाओं को भी लांघकर रसिकजन इसका आनंद लेने के लिए काशी प्रवास कर रहे हैं। संकटमोचन दरबार में 19 अपैल की ढलती सांझ के साथ ही कर्णप्रिय संगीत परवान चढ़ने लगा। पहली निशा के मुख्य आकर्षण रहे प्रख्यात भजन गायक अनूप जलोटा। उनकी गायकी ने ऐसा समा बांधा कि श्रोताओं पर सम्मोहन सा हो गया। अपने चिरपरिचित अंदाज में शुरूआत करते हुए अनूप जलोटा ने प्रसिद्ध भजन ‘ ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन’ सुनाया तो ऐसा लगा जैसे श्रोता मगन हो गये। इस दौरान तालियों की गड़गड़ाहट इस बात की ओर साफ तौर से तस्दीक कर रही थी कि अनूप जलोटा को यूं ही भजन सम्राट नहीं कहा जाता है। इसके बाद उन्होंने ‘ राम जी चले न हनुमान के बिना ’ सुनाया तो श्रोता झूम उठे। वहीं शास्त्रीय गायिका मधुमिता रे ने भी अपने गायन का लोहा मनवाया। इसके पहले संगीत समारोह का आगाज हैदराबाद के युगल कलाकारों ने कथक नृत्य प्रस्तुत कर किया। शिव स्तुति के साथ शुरू करने के बाद ‘ छेड़ो न नंदलाल ’ पर भावपूर्ण प्रस्तुति दी। साथ ही अन्य कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी। इस दौरान पूरी रात संगीत प्रेमी स्वरलहरियों की बारिश में भीगते रहे। संगीत समारोह के दूसरी निशा पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरीवादन के नाम रही। पद्मविभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने अपनी प्रस्तुति राग मारू बिहाग से शुरू की। धीरे-धीरे बांसुरी की तान लोगों के मन आत्मा में शहद की तरह घुलती रही। उन्होंने एक से बढ़कर एक सुमधुर तानों से ऐसे राग सुनाये की संगीत को नहीं समझने वाले दर्शक भी बांसुरी की धुन में खो गये। वहीं तबले पर संगत कर रहे पद्मश्री विजय घाटे ने बांसुरी की तान पर जबर्दस्त थाप मिलाया जिसे सुनकर दर्शकों की तालियां ऐसा लग रहा था जैसे स्वतः ही आपस में मिलकर कलाकारों का अभिनंदन कर रही हो। वही समारोह की शुरूआत आशीष सिंह के कथक से हुई। उन्होंने ‘ श्री राम चन्द्र कृपाल भजमन ’ पर शानदार नृत्य किया। उनके हर एक भाव पर श्रोता उत्साहित हो रहे थे। हैदराबाद की आनंद शंकर जयंत ने भरतनाट्यम की बेहतरीन प्रस्तुति दी। उन्होंने रामायण पर आधारित त्यागराज के बोलों को नृत्य में पिरोया। इसके अलाव अन्य कलाकारों ने भी संगीत के विभिन्न रंगों से हनुमत दरबार को सराबोर कर दिया। संगीत समारोह की तीसरी निशा को खास बनाया प्रसिद्ध संतूर वादक भजन सोपोरी ने। उन्होंने अपनी प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। संतूर पर उनकी जादूगरी के सभी कायल हो गये। भजन सोपोरी ने कई रागों को संगीत प्रमियों के सामने प्रस्तुत किया। इसके बाद आधी रात को प्रसिद्ध ड्रमर शिवमणि ने अपने ही अंदाज में ड्रमर बजाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। हालत यह थी की संगीत प्रमियों ने शिवमणि से दोबारा प्रस्तुति देने का आग्रह कर संगीत का भरपूर आनंद उठाया। साथ ही अर्बन चटर्जी का गायन, शाहना बनर्जी का सितार और पंडित पुझडरिक कृष्ण भागवत के तबले की जुगलबंदी बेहतरीन रही। इस दौरान पूरी निशा संगीत का सावन बरसता रहा। संगीत समारोह की चौथी निशा भी संतूर के इर्द-गिर्द घूमती रही। प्रसिद्ध संतूर वादक शिवकुमार शर्मा ने अपनी प्रस्तुति से संगीत की ऐसी साधना की कि सभी झूमने पर मजबूर हो गये। उन्होंने राग बागेश्वरी से प्रारम्भ किया। उसके बाद जोड़, झाला, रूपक और तीन ताल में प्रस्तुति दी। पद्मश्री पंडित शिवकुमार के साथ तबले पर थाप पंडित राजकुमार मिश्र ने की। वहीं बनारस घराने के युवा कलाकार विशाल कृष्ण ने कथक की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। इसके अलावा साध्वी सुनंदा पटनायक ने गायन में ‘ काहे सुन्दरवा बोलत नाही ’ सहित अन्य बंदिशें प्रस्तुत की। चौथे निशा की शुरूआत विदुषी कंगना बैनर्जी के गायन से शुरू हुई। उन्होंने राग मारवा के बाद ताल झूमरा में ‘ पिया मोरे आना ’ प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। इस तरह पूरी निशा दर्शक संगीत के विभिन्न आयामों से रूबरू होते रहे।