वैसे तो पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर नेपाल में स्थित है लेकिन उस मंदिर का प्रतिरूप मंदिर वाराणसी में भी है। इस मंदिर की खासियत यह है कि जैसा नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर है बिल्कुल उसी शैली का काशी का मंदिर भी है। स्थापत्य कला की दृष्टि से बेहतरीन यह मंदिर काफी प्राचीन है। इस मंदिर को देखने से ऐसा एहसास होता है जैसे नेपाल के किसी मंदिर में मौजूद हैं। अपने आप में यह मंदिर काशी के अन्य शिव मंदिरों से बिल्कुल भिन्न है। नेपाली लकड़ी के प्रयोग से निर्मित यह मंदिर लोगों को खूब आकर्षित करता है। मंदिर के भीतर गर्भगृह में पशुपतिनाथ के रूप में शिवलिंग स्थापित हैं। माना जाता है कि काशी के इस पशुपतिनाथ के दर्शन से वही फल प्राप्त होता है जो नेपाल के पशुपतिनाथ के दर्शन से होता है। इस मंदिर का निर्माण नेपाल के राजा राजेन्द्र वीर विक्रम साहा जो कि धार्मिक प्रवृत्ति के थे ने पशुपतिनाथ के आशीर्वाद से सन् 1843 में ललिता घाट पर कराया था। मंदिर का निर्माण नेपाल से आये कारीगरों ने किया था। मंदिर निर्माण में प्रयोग की गयी लकड़ी को भी राजा ने नेपाल से ही मंगवाया था। कारीगरों ने मंदिर में लगायी गयी लकड़ी पर बेहतरीन नक्काशी उभारा। मंदिर के चारो तरफ लकड़ी का दरवाजा होने के साथ भित्ती से लेकर छत तक सबकुछ लकड़ी से बनाया गया है। इन लकड़ियों पर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां उभारी गयी हैं। जो देखने में बेहद आकर्षित करती हैं। वहीं इन लकड़ियों पर कई जगह कामसूत्र की वैसी ही आकृतियां बनायी गयी हैं जैसी खजुराहो के मंदिरों पर बनी हैं। काशी में इस तरह की आकृति सम्भवतः इसी मंदिर पर है। मंदिर के बाहर एक बड़ा सा घण्टा भी है। वहीं दक्षिण द्वार के बाहर पत्थर का नंदी बैल भी है। पशुपतिनाथ का यह मंदिर सुबह साढ़े 4 बजे खुलता है जो दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है। वहीं पुनः मंदिर सायं 3 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में आरती सुबह 5 बजे एवं शाम को साढ़े 6 बजे सम्पन्न होती है। शाम की आरती में मौसम के अनुसार कुछ फेरबदल भी होता रहता है। सप्ताह के प्रत्येक सोमवार को मंदिर में पशुपतिनाथ जी का रूद्राभिषेक होता है। साथ ही महाशिवरात्रि में भी पशुपतिनाथ जी का अभिषेक होता है। इस दिन दर्शन-पूजन के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं। अन्य अवसरों पर स्थानीय लोगों से ज्यादा नेपाली श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए अधिक आते हैं। मंदिर की देख-रेख के लिए नेपाल सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करता है। इस मंदिर के पुजारी जीवन पौड़िल हैं। कैंट से करीब 6 किलोमीटर दूर यह मंदिर ललिता घाट पर डी 1/64 में स्थित है।