बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यह घाट अस्तित्व में आया, इसके पूर्व यह प्रभुघाट का एक भाग था। निषाद (मल्लाह) जाति बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इसे निषादराज घाट के नाम से जाना जाता है। घाट पर निषादराज (शिवलिंग) मंदिर एक मात्र मन्दिर है, जिसका निर्माण लगभग दो दशक पूर्व निषाद समाज के द्वारा कराया गया था। इस घाट क्षेत्र पर प्रमुख रूप से मल्लाह जाति के लोग ही स्नान करते हैं।