पूर्व में इसका नाम कुवाईघाट था जिसका उल्लेख जेम्स प्रिंसेप (सन् 1831) ने किया है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में घाट पर नारदेश्वर (शिव) मंदिर का निर्माण हुआ, जिससे घाट का नाम परिवर्तित होकर नारद घाट पड़ा। ऐसी मान्यता है कि नारदेश्वर शिव की स्थापना देवर्षि नारद ने किया था। उन्नींसवीं शताब्दी के अन्त में दक्षिण भारतीय स्वामी सतीवेदान्द दत्तात्रेय ने घाट का पक्का निर्माण कराया, घाट के ऊपरी भाग पर दत्तात्रेयेश्वर (शिव) मंदिर की स्थापना एवं दत्तात्रेय मठ का निर्माण कराया। घाट पर अत्रीश्वर मंदिर (उन्नीसवीं शताब्दी) एवं बीसवीं शताब्दी में स्थापित एक शिव मंदिर भी है। घाट पर एक विशाल पीपल वृक्ष है, जिसके छांव में 12-13वीं शताब्दी के खण्डित विष्णु मूर्तियों के अवशेष हैं। स्थानीय एवं धार्मिक प्रवृत्ति के लोग यहाँ स्नान आदि कार्य करते हैं। राज्य सरकार ने सन् 1965 में घाट का पुनः निर्माण कराया था।