दशाश्वमेध घाट

सन् 1735 में घाट का निर्माण बाजीराव पेशवा ने कराया था। पूर्व में इस घाट का विस्तार वर्तमान अहिल्याबाई घाट से लेकर राजेन्द्रप्रसाद घाट तक था। काशीकेदार महात्म्य के अनुसार ब्रह्मा जी ने काशी के इसी गंगा तट पर दस अश्वमेघ यज्ञ किया था, इसी संदर्भ के अनुसार ही घाट का नामकरण हुआ। जबकि डॉ0 काशी प्रसाद जायसवाल का अनुमान है कि दूसरी शताब्दी में प्रसिद्ध भारशिव राजाओं ने कुषाणों को परास्त कर दस अश्वमेध यज्ञ करने के पश्चात यहीं पर स्नान किया था तभी से इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। प्राचीन काल में इसका नाम रूद्र सरोवर था, घाट के सामने गंगा को रूद्र सरोवर तीर्थ माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस तीर्थ में स्नान मात्र से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज भी संकल्प मंत्रोच्चारण में इस जगह के लिये ‘रूद्र सरोवर’ का ही नाम लिया जाता है।

    धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से यह काशी का सर्वाधिक प्रसिद्ध घाट है। मत्यस्यपुराण के अनुसार काशी के पाँच प्रमुख तीर्थों में इस घाट को स्थान प्राप्त है। घाट पर गंगा, काली, राम पंचायतन एवं शिव मंदिर स्थापित है जो स्थापत्य के दृष्टि से सामान्य तथा स्वरूप में छोटे-छोटे हैं। मुण्डन संस्कार, विवाह, गंगा पुजईया आदि शुभ कार्य गंगा के साक्षी स्वरूप इस घाट पर सम्पन्न किये जाते हैं। वाराणसी में होने वाले दुर्गापूजा, सरस्वती पूजा, काली पूजा एवं अन्य आराध्यों के पूजा के पश्चात उनके प्रतिमाओं का विसर्जन इस घाट पर पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है। प्रतिदिन सायंकाल में घाट पर गंगा आरती का आयोजन होता है जिसके मनोरम दृश्य से दर्शकों को अद्भुत आनन्द प्राप्त होता है। देव दीपावली पर घाट को पारम्परिक दीयों से भव्य रूप से सजाया जाता है जिसके रोशनी से घाट जगमगा उठता है। राज्य सरकार द्वारा घाट के सामने गंगा में बजड़ों (कई नावों को आपस में जोड़कर एक विशाल मंच तैयार किया जाता है) पर गंगा महोत्सव का आयोजन किया जाता है, इस शास्त्रीय संगीत समारोह में विख्यात कलाकारों की सहभागिता होती है। चैत्र के प्रथम मंगलवार को होने वाला ‘बुढ़वा मंगल’ विशेष रूप से विश्व विख्यात है, बनारसी मस्ती-मिजाज के उमंग में यहां राजा को भी घोषित किया जाता है वह भी पूरे सम्मान के साथ। घाट पक्का एवं स्वच्छ है, शहर के मध्य एवं मुख्य मार्ग से जुड़े होने के कारण यहाँ दैनिक एवं पर्व विशेष पर गंगा स्नानार्थियों का आवागमन होता रहता है। देशी-विदेशी पर्यटकों के लिये यह वाराणसी का केन्द्र है। सन् 1965 में राज्य सरकार ने वर्तमान दशाश्वमेध घाट का नव निर्माण कराया था।

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