उन्नीसवी शताब्दी के मध्य में घाट एवं भवन का निर्माण ग्वालियर के राजा जियाजी राव शिन्दे के दीवान बालाजी चिमणाजी जटार ने कराया था, अतः घाट का नामकरण जटार घाट हुआ। जेम्स प्रिंसेप के अनुसार घाट का प्राचीन नाम चोरघाट था, जिसके संदर्भ में स्थानीय लोगों का मत है कि पहले इस घाट पर स्नान करने वालो के समान (जो स्नान करने के लिये साथ लाते थे) प्रायः चोरी हो जाते थे, जिससे लोगों में यह चोरघाट के नाम से प्रचलित हो गया। कालान्तर में घाट एवं यहाँ स्थित भवन का निर्माण हो जाने के पश्चात घाट का नाम परिवर्तित हो गया। बाला जी जटार के द्वारा निर्मित बहुमंजिले भवन (K 24/33) के एक भाग में लक्ष्मीनारायण का कलात्मक मंदिर है, मंदिर पर रंगीन काँच के टुकड़ों का मनोहारी जड़ाऊ अलंकरण है इस कारण इसे जड़ाऊ मंदिर भी कहते है। घाट स्थित गंगा में कालगंगा तीर्थ की स्थिति मानी गई है। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है यहाँ दैनिक एवं स्थानीय लोग स्नान करते हैं। घाट के समीपवर्ती क्षेत्रों में महाराष्ट्र एवं गुजरात के लोगों की संख्या अधिक है। घाट स्थित लक्ष्मीनारायण (जड़ाऊ मंदिर) मंदिर समुचित रख-रखाव न होने के कारण अपनी कलात्मकता को खो रहा है जिसके जिर्णोद्धार की आवश्यकता है।