बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में वाराणसी के व्यवसायी लल्लू जी अग्रवाल ने इस घाट का निर्माण करवाया था कुछ वर्षों पूर्व तक घाट पर एक विशाल गुल्लर का वृक्ष था जिसके कारण इस घाट का गुल्लरियाघाट नाम पड़ा। पूर्व में यह दण्डीघाट का ही एक अंग था। घाट पक्का है लेकिन धार्मिक महत्व न होने के कारण इस घाट पर लोग स्नान आदि कार्य नहीं करते।