ऐसी मान्यता है कि शिव भक्त क्षेमक (राक्षस) ने घाट तट पर क्षेमकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी, इसी मंदिर के कारण ही इस घाट का नामकरण हुआ। मोतीचन्द्र (सन् 1931) ने घाट का उल्लेख सोमेश्वर नाम से किया है, लेकिन घाट पर सोमेश्वर शिव का कोई मंदिर एवं तीर्थ नहीं है, इसलिये ऐसा लगता है कि भ्रमवश क्षेमेश्वर को सोमेश्वर कहा गया। घाट का पक्का निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी में कुमारस्वामी मठ के द्वारा करवाया गया था। किसी विशेष सांस्कृतिक महत्व से न जुड़े होने के कारण स्थानीय लोग भी यहाँ कम संख्या में स्नान करते हैं, गौड़ (भूजा) जाति के लोग ही विशेषतः क्षेमेश्वर शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। सन् 1958 में राज्य सरकार ने घाट का मरम्मत करवाया था।