केदारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर होने के कारण ही इस घाट का नाम केदारघाट पड़ा है, काशी के द्वादश ज्योतिर्लिगों में केदारेश्वर शिव को स्थान प्राप्त है, जिसका संदर्भ काशी खण्ड, मत्स्य पुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, गीर्वाणपदमंजरी में मिलता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार केदार घाट को आदि मणिकर्णिका क्षेत्र के अन्तर्गत माना गया है, जहाँ प्राण त्यागने से भैरवी यातना से मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।
केदारेश्वर शिव मंदिर को हिमालय में स्थित केदारनाथ मंदिर का प्रतिरूप माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन-पूजन से हिमालय के केदारनाथ के दर्शन-पूजन का फल प्राप्त होता है, ऐसी भी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने काशी में इनका दर्शन-पूजन किया था। स्थानीय लोग केदारेश्वर शिव को काशी विश्वनाथ के अग्रज के रूप में स्वीकार करते हैं। घाट पर विटंकन नृसिंह मन्दिर एवं भैरव मंदिर भी स्थापित हैं, घाट पर सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कुमारस्वामी ने कुमारस्वामी मठ की स्थापना की थी। मठ के द्वारा ही 18वीं शताब्दी में घाट का पक्का निर्माण कराया गया था। घाट स्वच्छ एवं सुदृढ़ होने से दैनिक स्थानार्थियों के साथ-साथ विशेष पर्वों एवं अवसरों पर स्नान करने वालों की संख्या अधिक होती है। श्रावण माह में इस घाट पर स्नान-दान, पूजन-पाठ का सर्वाधिक महात्म्य है। दूर्गापूजा एवं कालीपूजा के बाद प्रतिमाओं का विसर्जन भी इस घाट पर सम्पन्न होता है। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था।