कामाख्या देवी मंदिर

काशी के देवी मंदिरों में कामाख्या देवी का मंदिर भी महत्वपूर्ण है। कामाख्या देवी को जागृत माना गया है। मान्यता के अनुसार कमच्छा मोहल्ला कामाख्या देवी के नमा से ही पड़ा है। मां कामाख्या का प्रधान मंदिर  असम के गोवाहाटी में स्थित है। कामाख्या पीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां मां का योनि यंत्र में विग्रह स्थापित है। मां कामाख्या देवी की प्रतिमा देखने में शांत एवं मनमोहक लगती हैं। माना जाता है कि इनके दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और मां अपने भक्तों की सदा रक्षा करती हैं। मां की मूर्ति कब स्थापित की गयी और मंदिर का निर्माण किसने कराया यह किसी को ज्ञात नहीं है। मंदिर परिसर में ही क्रोधन भैरव का विग्रह, भद्रकाली, हनुमान जी का भी विग्रह स्थापित है। साथ ही मां कामाख्या की प्रतिमा के नीचे चौसठ योगिनियों का विग्रह है। यहां पर एक शिवलिंग भी हैं। साथ ही मां पार्वती की गोद में सिर कटे गणेश जी का भी विग्रह है। इसके अलावा मां प्रत्यगिंरा देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में काशी के सात धार्मिक कूपों में से एक धनन्जय कूप भी है। कहा जाता है कि इसका जल अमृत के समान है। जिसके पीने से कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। इस मंदिर में बड़ा आयोजन सावन महीने में किया जाता है इस महीने की तीसरे मंगलवार को मां कामाख्या का वार्षिक श्रृंगार बेहद ही आकर्षक ढंग से किया जाता है। इस दौरान खास तरह के फूलों से मंदिर को सजाया जाता है। वार्षिक श्रृंगार का दर्शन करने काफी संख्या में भक्त मंदिर में पहुंचते हैं। इस दिन पूरे दिन श्रद्धालु मां की आराधना करते हैं। दूसरा बड़ा आयोजन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अक्षय नवमी तिथि होता है। इस अवसर पर मां का अन्नकूट श्रृंगार किया जाता है। अन्नकूट श्रृंगार में कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाकर मां को चढ़ाये जाते हैं। इस दिन भी काफी संख्या में भक्त मां के दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर का मुख्य द्वार प्रातः 4 बजे खुल जाता है जबकि गर्भगृह प्रातः साढ़े 5 बजे खुलता जो दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है। वहीं शाम को 4 से रात साढ़े 10 बजे तक मंदिर खुला रहता है। आरती सुबह 6 बजे एवं शाम 7 बजे सम्पन्न होती है। इस मंदिर के महंत दिगम्बर वीरेश्वर पुरी हैं। कामाख्या देवी मंदिर के पास ही बटुक भैरव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर कैंट स्टेशन से करीब 6 किलोमीटर दूर कमच्छा में स्थित है।

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