मध्यकाल पिछड़ा नहीं बल्कि आधुनिकता का आरंभिक काल
– अभिनव भट्ट
वाराणसी- साहित्य अकादमी (नई दिल्ली) के तत्वावधान में शुक्रवार 9 अगस्त को ‘लेखक से भेंट’ विषयक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी पर केंद्रित था। बीएचयू के स्वतंत्रता भवन में हुए इस कार्यक्रम में प्रो0 द्विवेदी ने अपनी साहित्य साधना के अनछुए पहलुओं से अवगत कराया। विद्वानों के बीच अनेक मान्यताओं का निराकरण किया। उन्होंने कहा कि शब्द में कोई शक्ति नहीं रहती, शक्ति शब्द के ज्ञान में मानी जाती है।
प्रो0 द्विवेदी ने कहा कि भाषा के भेद से साहित्य का भेद नहीं होता। साहित्य एक ही रहता है। तर्क देते हुए कहा कि जैसे सूर्य के शरीर में प्रकाशकत्व रहता है वैसे ही यदि शब्द के शरीर में अर्थबोधिका शक्ति होती तो संपूर्ण विश्व की भाषा एक होती।
संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य व भारतीय भाषा केंद्र के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि कबीर का मध्यकाल पिछड़ा हुआ नहीं बल्कि आधुनिकता का आरंभिक काल है। साहित्य अकादमी की ओर से बीएचयू स्वतंत्रता भवन में आयोजित ‘कबीर उत्सव’ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कबीर की भक्ति सामाजिक मूल्यों का समुच्चय है। यह सगुण-निर्गुण भक्तों का साझा विश्वास है। कहा कि कबीर को हाशिए की आवाज कहना, दरअसल भारतीय इतिहास को उपनिवेशवादी दृष्टि से देखने का परिणाम है। यह हमारी चेतना के उपनिवेशीकरण का प्रमाण है। उन्होंने भारतीय इतिहास की सहिष्णुता, समरसता तथा ज्ञान के क्षेत्र में हुए वाद-विवाद व संवाद को श्रेष्ठ बताया। कहा कि कवि दूसरा प्रजापति होता है।
आरंभिक वक्तत्व मेें प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि कबीर और तुलसी की विचारधारा को विरोधी बताना गलत है। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो0 विश्वनाथ तिवारी ने कहा कि कबीर और तुलसी एक दूसरे के पूरक हैं। कार्यक्रम में डॉ0 नीरजा माधव व प्रकाश उदय ने भी विचार व्यक्त किया। सायंकालीन सत्र में कबीर की स्मृति में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कवि ज्ञानेंद्रपति ने की। स्वागत प्रो0 राजकुमार, संचालन साहित्य अकादमी के उपसचिव डॉ0 बृजेंद्र त्रिपाठी व धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 संजय कुमार ने किया। इस मौके पर अकादमी के अध्यक्ष डॉ0 विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, उप सचिव डॉ0 बृजेंद्र त्रिपाठी सहित प्रो0 आरएस शर्मा, प्रो0 एमएन राय, रामचंद्र पांडेय, प्रो0 अमरनाथ पांडेय, प्रो0 चंद्रमौलि द्विवेदी, प्रो0 जयशंकर लाल त्रिपाठी, प्रो0 भगवतशरण शुक्ल, डॉ0 विश्वनाथ पांडेय आदि मौजूद थे। इस दौरान पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन हुआ।
हिंदी के मूर्धन्य विद्वान भी श्रोता बने उन्हें सुन रहे थे। सुनने वालों में पण्डित हरिराम द्विवेदी, कवि ज्ञानेंद्रपति, प्रो0 श्रीनिवास पांडेय, प्रो0 अवधेश प्रधान, प्रो0 वशिष्ठ अनूप, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो0 बलिराज पांडेय, प्रो0 वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, अशोक आनंद आदि लोग उपस्थित थे।