आदिकेशव घाट

अठ्ठारहवीं शताब्दी में बंगाल की महारानी भवानी ने घाट का पक्का निर्माण कराया था। परन्तु कुछ वर्षों के पश्चात यह क्षतिग्रस्त हो गया जिसका पुनः निर्माण सन् 1906 में ग्वालियर राज के दीवान नरसिंह राव शितोले ने कराया। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आज्ञा से विष्णु जी जब सर्वप्रथम काशी में आये तो वह इसी घाट पर पधारे थे उन्हेंने स्वयं की प्रतिमा इस घाट पर प्रतिस्थापित किया, वर्तमान में यह प्रतिमा आदिकेशव मंदिर में स्थापित है, जिसके कारण ही घाट का नाम आदिकेशव घाट पड़ा गंगा एवं वरूणा के संगम स्थल पर स्थित होने से इसे गंगावरूणा संगम घाट भी कहते हैं। घाट पर आदि केशव के अतिरिक्त ज्ञान केशव, संगमेश्वर शिव चिन्ताहरण गणेश, पंचदेवता एवं एक अन्य शिव मंदिर स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि संगमेश्वर शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्मा ने की है। काशी के घाट श्रृंखला में यह काशी का अन्तिम घाट है। मत्यस्यपुराण के अनुसार इस घाट को काशी के प्रमुख पाँच घाट तीर्थों में स्थान प्राप्त है एवं काशी का प्रथम विष्णु तीर्थ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता है कि विष्णु जी जब काशी में पधारे तो इसी गंगातट पर अपने पैर धोया। इस घाट के सम्मुख गंगा में विष्णु से सम्बन्धित पदोदक, अम्बरीश, महालक्ष्मी, चक्र, गदा, पद्म, आदित्यकेशव एवं श्वेतदीप तीर्थों की स्थिति मानी गई है। लिंगपुराण एवं काशीखण्ड के अनुसार घाट के सम्मुख गंगा में स्नान, स्पर्श या जलग्रहण मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। घाट का महत्व गहड़वाल काल से ही रहा है, घाट के समीप ही गहड़वाल शासकों का किला था, इनके दानपत्रों में घाट पर मुण्डन संस्कार, नामकरण, उपनयन एवं अन्य संस्कारों के सम्पन्न होने का प्रमाण है। भाद्र माह के शुक्ल द्वादशी घाट को वारूणी पर्व का मेला आयोजित होता है जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। काशी के पंचतीर्थी एवं पंचक्रोशी यात्री इस घाट पर स्नान एवं दर्शन के पश्चात आगे की यात्रा करते हैं जो मणिकर्णिका घाट पर जाकर समाप्त होता है। घाट के उपरी भाग में एक व्यायामशाला भी है। वर्तमान में मुख्य घाट पक्का है किन्तु शहर के बाहर स्थित होने के कारण यहाँ दैनिक स्नानार्थियों की संख्या कम होती है, पर धार्मिक महात्म्य के कारण स्थानीय एवं पर्व विशेष पर स्नान करने वाले स्नानार्थियों का आगमन होता है। सन् 1985 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का मरम्मत कराया गया एवं वर्तमान में इसकी स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।

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