असि घाट (अस्सी घाट)

असि घाट-अस्सी घाट के नाम से भी जाना जाता है जो संख्या सूचक एवं असि का अपभ्रंश मालूम पड़ता है। अस्सी घाट काशी के महत्वपूर्ण प्राचीन घाटों में से एक है, यदि गंगा के धारा के साथ-साथ चलें तो यह वाराणसी का प्रथम घाट तथा काशी की दक्षिण सीमा पर गंगा और असि (वर्तमान में विलुप्त) नदियों के संगम पर स्थित है। इस घाट पर स्थित मंदिर 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के हैं, लक्ष्मीनारायण मंदिर पंचायतन शैली का है, यह मंदिर न केवल तीन अलग-अलग देवताओं से सम्बन्धित है बल्कि नागर स्थापत्य शैलियों को भी दर्शाते हैं। असिसंगमेश्वर मंदिर काशीखण्ड में वर्णित शिव मंदिरों में से एक है, जिसके दर्शन-पूजन का विशेष महात्मय है। जगन्नाथ मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर का प्रतीक रूप है, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस मन्दिर का निर्माण जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) के महन्त ने करवाया था, ब्रह्मवैवर्तपुराण में काशी के सात पुरियों कि स्थिति के संदर्भ में इसे काशी का हरिद्वार क्षेत्र माना गया है। इसके अतिरिक्त नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर इस घाट क्षेत्र में स्थित है। काशीखण्ड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ इसके सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं, अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। पूर्व में इस घाट का सम्पूर्ण क्षेत्र वर्तमान भदैनीघाट तक था, तुलसीदास जी ने इसी घाट पर एक गुफा में निवास कर ‘रामचरित मानस’ की रचना की और संवत् 1680 में इसी घाट पर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। 19वीं शताब्दी के बाद यह घाट पाँच घाटों अस्सी, गंगामहल (प्रथम), रीवां, तुलसी तथा भदैनी घाटों में विभाजित हो गया। सन् 1902 में बिहार राज्य के सुरसण्ड स्टेट की महारानी दुलहिन राधा दुलारी कुंवर ने तत्कालीन काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह से घाट तथा मंदिर निर्माण हेतु जमीन को क्रय कर लिया, जून 1927 ई0 को महारानी की आकस्मिक मृत्यु के कारण घाट का निर्माण नहीं हो पाया लेकिन उनके द्वारा निर्मित लक्ष्मीनारायण पंचरत्न मंदिर उनकी धार्मिकता एवं कलाप्रियता का प्रतीक है। सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से इस घाट का पक्का निर्माण कराया गया। यह घाट सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मस्ती के स्वरूप में वाराणसी का केन्द्र है, इस घाट पर दैनिक स्नानार्थियों की भीड़ सर्वाधिक होती है। प्रातः चार बजे से ही लोग इस घाट पर जमघट लगाना आरम्भ कर देते हैं और यह क्रिया कलाप पूरे दिन इसी तरह से चलता रहता है, सूर्यास्त के पश्चात इस घाट पर प्रशिक्षित पण्डों द्वारा मंत्रों एवं घण्ट-घड़ियालों के गूंज के साथ गंगा आरती का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। जन्म, मुण्डन संस्कार, उपनयन, विवाह, गंगा पुजईया आदि मांगलिक कार्य, उत्सव इस घाट पर साक्षी के रूप में सम्पन्न किये जाते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top