सन् 1965 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पक्का निर्माण कराया गया था। यह घाट काशी के प्राचीन एवं प्रमुख घाटों में स्थान रखता है जिसका उल्लेख गीर्वाणपदमंजरी में भी हुआ है। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्व तक इसका विस्तार वर्तमान गणेशघाट तक था। घाट के समीप अग्निश्वर (शिव) मंदिर स्थापित होने के कारण इसका नाम अग्निश्वर घाट पड़ा। घाट के समक्ष गंगा को अग्नितीर्थ की मान्यता है। लिंगपुराण में उल्लेख है कि काशी की अष्टायतन शिव यात्रा इसी घाट पर स्नान करने के पश्चात अग्निश्वर शिव के दर्शन से आरम्भ होती है। घाट पर नागेश विनायक (गणेश) मंदिर एवं उपशान्तेश्वर शिव मंदिर भी स्थापित है। पूर्व में घाट पर बालू तथा लकड़ी का क्रय-विक्रय होता था जिसे सन् 1985 से प्रतिबन्धित कर दिया गया। वर्तमान में घाट पक्का एवं स्वच्छ है। धार्मिक महत्व होने के कारण यहाँ दैनिक एवं पर्व विशेष पर स्नान करने वालों का आवागमन होता है।