पंडित विद्यानिवास

 साहित्यकार, चिन्तक और अध्येता पंडित विद्यानिवास मिश्र की स्मृति में पिछले दिनों तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विद्याश्री न्यास और बलदेव पीजी कालेज की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी का विषय लेखक शिविर ‘नारी चेतना और हिन्दी साहित्य’’ था। यह संगोष्ठी 12 से 14 जनवरी तक दुर्गाकुण्ड स्थित धर्मसंघ शिक्षा मंडल में हुई। तीन दिनों के इस संगोष्ठी मंे कई सत्र हुए। जिसमंे देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों का जमावड़ा हुआ। इस दौरान समाज में स्त्री के अस्तित्व, उसकी चेतना पर गंभीर विमर्श हुआ। मनीषियों ने आधुनिक समाज में स्त्रियों की दशा पर चिंता जाहिर करने के साथ ही उसे मुख्यधारा से जोड़ने पर बल दिया विद्वानों का कहना था कि बिना नारी उत्थान के समाज का विकास सम्भव नहीं है।
इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विद्याश्री न्यास और बलदेव पी0जी0 कालेज की ओर से किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि ख्यातिलब्द्ध उड़िया लेखिका ज्ञानपीठ सम्मान प्राप्त डॉ0 प्रतिभा राय ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि लेखक निरपेक्ष होता है। उसके लेखन में किसी प्रकार का बंधन या सीमाएं नहीं होती है। जब वह कुछ सृजित करता है तो उसके लिए ंिलंग, भाषा व क्षेत्र की बेड़ियां टूट जाती हैं। डॉ0 राय ने महिलाआंे की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। कार्यक्रय मंे विशिष्ठ अतिथि के रूप मंे उपस्थिति दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ0 कुमुद शर्मा ने ‘टेक्नोकल्चर’ को वर्तमान स्त्रियों के आजादी का माध्यम बताया लेकिन सोशल मीडिया पर स्त्रियों की स्थिति पर चिंता भी व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया ने महिलाओें को अभिव्यक्ति की नयी जमीन दी है किन्तु इस आजादी की नींव बाजार वाद पर है, जिसका रिमोट किसी दूसरे के हाथ में है। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो0 काशीनाथ सिंह ने तीसरे सत्र जिसका विषय था ‘‘नारी चेतना और कथा साहित्य’’ की अध्यक्षता की इस दौरान उन्होंने नारी की वर्तमान स्थिति को चिंतनीय बताया। कहा कि इस दौर में सबसे अधिक संख्या में महिलाएँ ही आत्महत्या कर रही हैं। जो खतरनाक है। उन्होंने कहा कि बेटी, बहू और माँ के दायित्व को निभाने में हर बार स्त्री ही उत्तरदायी रहती है। लेखिका बलवंत कौर ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सदैव ही नारी अस्तित्व को समाज में गंभीरता से नहीं लिया गया। इस सत्र का संचालन डॉ0 रामसुधार सिंह ने किया। इस मौके पर जानी-मानी उपन्यासकार डॉ0 उषा किरण खान को ‘सिरजनहाएँ उपन्यास के लिए पं0 विद्यानिवास मिश्र स्मृति सम्मान दिया गया। साथ ही उनकी कहानी ‘दूधबान’ की नाट्य प्रस्तुति भी हुई। राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन भी तमाम बड़े साहित्यकारो ंने नारी अस्मिता, चेतना और समाज में उसके स्थान पर बेबस से राय दिया। लेखिका कमल कुमार ने कहा कि समाज में स्त्री पुरुष के बीच अंतर की खाई आज भी सिर उठाये खड़ी है। पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष महिलाओं को समान दर्जा नहीं देता। उन्होंने कहा कि मानवीय अधिकारों के दायरे में ही स्त्री विमर्श भी आता है। इस सत्र में अशोक नाथ त्रिपाठी, शशिकला पाण्डेय, डॉ0 सविता उपाध्याय ने भी विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संयोजन प्रो0 मंजुला चतुर्वेदी एवं संचालन प्रो0 श्रद्धानंद ने किया। चौथे सत्र ‘नारी चेतना और वार्षिक साहित्यसत्र की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार मृदुला सिन्हा ने कहा कि लोकगीत एक ऐसा माध्यम है जिसमें स्त्रियों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को उर्जा मिलती है। उनका व्यवहार उभर कर सामने आता है। कसक महसूस करते हुए कहा कि दुर्भाग्य से आज की महिला इतने सशक्त हथियार से दूर होती जा रही है। उन्होंने लोकगीतों को बचाने की अपील की। दूसरे दिन की संगोष्ठी का समापन काव्य सम्मेलन से हुआ। कवियों ने अपनी कविता से कुरीतियों पर सवाल खड़ा किया। सरोज ने पढ़ा कि ‘कहां आ गये कर्णधारों से पूछो, लुटी कैसे दुल्हन कहारों से पूछो प्रो0 मंजुला चतुर्वेदी ने कहा कि ‘अब रोती है चिड़िया बैठे मंुडेर पर माटी के ढेले से मैं फोड़ रही माटी के ढेर’’ इस दौरान अन्य कवियों ने भी कविताओं के माध्यम से झकझोरा। इसका संचालन प्रकाश उदय व अध्यक्षता परमानंद आनंद ने किया।
संगोष्ठी के तीसरे और अंतिम दिन वक्ताओं ने पंडित विद्यानिवास मिश्र से जुड़े संस्मरण को बांटा। साहित्यकार मृदुला सिन्हा ने उन्हें याद करते हुए कहा कि पंडित जी से मिलने वाले हर व्यक्ति को ऐसा लगता जैसे व पुराने परिचित हो प्रो0 वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय प्रो0 मंजुला चतुर्वेदी प्रो0 श्रीनिवास पाण्डेय, डॉ0 रमेश चन्द्र पाठक ने भी संस्मरण सुनाया। अध्यक्षता डॉ0 महेश्वर मिश्र ने किया इस मौके पर 2014 का ‘लोक कवि सम्मान’ रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘जुगानी भाई’, हेमलता पाण्डेय को ‘राधिका देवी लोक कला सम्मान’ और कवि पंडित श्रीकृष्ण तिवारी के स्मृति में पहला सम्मान कवि परमानंद को दिया गया। सम्मान के रूप में डॉ0 महेश्वर मिश्र व विद्याश्री न्यास के मंत्री डॉ0 दयानिधि मिश्र ने प्रशस्ति पत्र दिया। संचालन प्रकाश उदय व धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 मुक्ता ने दिया। इस मौके पर दो पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। वहीं, आलेख प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमंे उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। संगोष्ठी के दौरान दीवारों पर महिलाओं के विभिन्न संवेदनाआंे को उकेरती हुई बेहतरीन पंन्टिग्स भी लगाई गयी थी।

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